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________________ (देव शिल्प (२०७) सुवर्ण पुरुष आमलसार कलश के मध्य भाग में राफेद रेशम के वस्त्र से टंका हुआ चंदन का पलंग रखें | इस पलंग के रूपर कनया पुरुष (स्वर्ण का प्रासाद पुरुष) रखना और इसके पास घृत से मरा हुआ ताग्न कलश रखें। यह क्रिया शुभ- मुहूर्त में कराये । यह प्रसाद का मर्गरथा-1 (जीव रस्थान ) है |# सुवर्ण पुरुष का मान प्रथम विधि : एक हास्य की चौड़ाई वाले प्रासाद में कक पुरुष आधे अंचल का बनायें। इसके बाद प्रत्येक हाथ के लिए चौथाई अंगुल बढ़ा। चाहिये ।** ___द्वितीय विधिःप्रासाद की चौड़ाई एक हाथ से पचास हाथ तक की चौड़ाई के लिए प्रत्येक हाथ आधा आधा अंगुल बढ़ाकर बनाएं। सुवण पुरुष की स्थापना पापक पुरुष मन्दिर का जीव माना जाता है। इसकी स्थापना का रथा- छजा के प्रवेश में, शिखर के मध्य भाग में, अथवा उराके ऊपर, शुक ||सिका के अतिम स्थान में, वेदी के ऊपर और दो माल के मध्य गर्ग में रखना चाहिये । सामान्यतः इसकी स्थापना आगलसार कलश में की जाती है । यह स्वर्ण, रजत या लान का बनाकर जलपूर्ण कलश स्थापन करें। बाद में उसे पलंग के ऊपर रखें। इसके बाद अपने नाम से अंकित स्वर्ण मुद्रा से भरे चार कलश पलंग के चारों पायों के पास रखें। इस प्रकार कानका पुरुष की स्थापना चिरकाल तक देवालय निर्माता को सुखी करती है। #(अप्प. पृ. सू. १५३, *आमलसरच मज्झे चंदनखड़ासु सेना । तस्सुवरि कणयपुरिसं धधप्रतओ य चरकलासा !व.स. २/२१ **जलाइ कमशो पायंगुलतिक यमुरिया अ । कीरइ युद्ध पसार इलाहटाई बापट । व. स. ३/33 प्रमाण सुरुपस्यानलं कुर्याद तर प्रत। त्रिपता कर वामे हादस्य दक्षिणा दुजम् ।। प्रा म ४/३५
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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