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________________ (देव शिल्प बलाणक कामान ज्येष्ठ मान के प्रासाद में कनिष्ठ मान का बलाणक बनाया जाता है। गध्यम मान के प्रासाद में मध्यम मान का बलाणक बनाया जाता है। कनिष्ठ मान के प्रासाद में ज्येष्ठ मान का बलाणक बनाया जाता है। बलाणकका स्थान .यह प्रासाद से एक, दो, तीन, चार, पांच, छह या सात पद (भाग) के अन्तर से दूर बनाया जाता है। बलाणक की रचना* गगह के आगे बलाणक या मन मंडप की ऊंचाई के १३, १/२ अथवा १४, १/२ अथवा १५, १/२ भाग करें। उनमें ८, ९ या १० भाग का खुला भाग (चन्द्रावलोकन) रखें । आस- पट्ट के ऊपर एक हाथ अथवा २१ अंगुल का कटहरा (मत्तवारण) बनाना चाहिये। खुले भाग के नीचे से मंडप के तल तक ५, १/२ भाग करें। उसमें १, १/४ भाग का राजसेन तथा ३, १/४ भाग की वेदो एक एक भाग का आसन पट्ट बनायें। आसन पट्ट के ऊपर के पाट के तलभाग तक ७, १/२ भाग करें। उसमें से ५, १/२ भाग का स्तंभ रखें। उसके ऊपर ३/४ भाग या १/२ भाग की भरणी तथा इसके ऊपर १, १/४ या १, १/२ भाग की शिरावटी रखें। शिरावटी के ऊपर दो भाग का पाट रखें । उसके ऊपर तीन भाग निकलता तथा पाट के पेटा भाग तक नमित (झुका हुआ) सुन्दर छज्जा बनायें। उसके ऊपर १/२ भाग की केवाल बनायें । पाट की चौड़ाई दो भाग रखें। *प्रा. मं.७/९-१३ अ.प.पृ. सू. १८४ श्लोक ५से १३ शब्द संकेत पेटा भाग- नीचे का भाग आसन पट्ट- बैठने का तकिया राजसेन- मंडप की पीठ के ऊपर काथर शिरावटी- भरणी के ऊपर काथर 'भरणी- प्रासादकी दीवार का तथा स्तंभ के ऊपर का थर
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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