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(देव शिल्प
बलाणक
गर्भगृह के आगे के मण्डप को बलापक कहते हैं। इसे मुखमण्डप भी कहते हैं। देवालय के द्वार के आगे तथा प्रवेश द्वार के ऊपर इसे बनाया जाता है। राजमहल, गृह, नगर, जलाशय आदि के द्वार के आगे भी इसे बनाया जाता है। जिनेन्द्र देव, शिव, सूर्य, ब्रह्म, विष्णु, तथा चंडिका के समक्ष बलाणक बनाना चाहिये ।
बलाक की चौड़ाई जगती के मान से चौथाई रखते हैं। इसे इस चौथे भाग का पुनः चार भाग करके एक भाग कम भी रख सकते हैं। कक्ष अथवा दालान के मान से, प्रासाद के गर्भगृह की चौड़ाई के मान से अथवा प्रासाद की चौड़ाई के बराबर वलाणक की चौड़ाई रख सकते हैं।
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मण्डप का द्वार और बलाणक का द्वार मुख्य प्रासाद के बराबर रखना चाहिये। यदि द्वार का मान (ऊंचाई) में वृद्धि करना इष्ट हो तो द्वार की ऊंचाई जितने हाथ की हो, उतने अंगुल की बढ़ा सकते हैं। चूंकि द्वार का ऊपरी भाग उत्तरंग समसूत्र में रखा जाना आवश्यक है अतएव यह वृद्धि नीचे के भाग में ही करना चाहिये। #
बलाणक के भेद
बलाक के पांच भेद निम्न हैं:
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3.
४.
५.
जगती के आगे की चौकी पर जो बलाक बनाते हैं उसके बायीं तथा दाहिनी तरफ के द्वार पर वेदिका (पीठ) तथा भत्तवारण (कटहरा बनाया जाता है। इसे वामन नामक बलाक कहते हैं ##
राजद्वार के ऊपर पांच या सात भूमि वाला बलाणक उत्तुंग नाम से जाना जाता है। जलाशय के बलापक को पुष्कर नाम दिया जाता है।
गृह द्वार के आगे एक, दो या तीन भूमि वाला बलाणक हर्म्यशाल कहलाता है। यह गोपुराकृति होता है। $
किले के द्वार के ऊपर गोपुर नामक बलाणक बनाया जाता है।
* शिवसूर्यो ब्रह्माविष्णु चण्डिका जिन एव च ।
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एतेषां च सुराणां च कुर्यादव्ये बलाणकम् । अप. सु. १२३
** जगतीपादविस्तीर्ण पादपादेन्द वर्जितम् । शालालिन्देन वार्भेण प्रासादेन समं भवेत् । प्रा.मं. ७/३९ #मूलप्रासादवद् द्वारं मण्डपे च बलाणके । न्यूनाधिकं न कर्त्तव्यं देये हस्तांगुलाधिकम् ।। प्रा. मं. ७/४१ ##जगत्यां चतुष्किका वामनं तद् बलाणकम् । वामे च दक्षिणे द्वारे वेदिकामत्तवारणम् ।। प्रा. मं. ७/४३ $हशाली गृहे वापि कर्तव्यो गोपुराकृतिः । एकभूम्यास्त्रिभूम्यन्तं गृहाद्यद्वारमस्तके ।। प्रा. मं. ७ / ४६