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________________ (देव शिल्प जिन मन्दिर में भण्डप जिन गन्दिर का निर्माण करते समय गर्भगृह के सामने के भाग में मन्दिर की उपयोगिता एवं शोभा दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के मण्डपों की निर्माण किया जाता है । मण्डप सामान्यतः चार स्तम्भों पर आधारित कलापूर्ण कक्ष होते हैं जिनका उद्देश्य उपासकों को पूजा, आरती, नृत्य आदि के लिए समुचित स्थान प्रदान करना है। गर्भगृह गहन तथा छोटा होता है तथा उसमें अधिक मात्रा में जनसमुदाय का बैठना, उपासना अथवा आरती, नृत्यादि करना संभव नहीं होता। साथ ही उसमें अत्यधिक आवागमन से वातावरण में अशुचिता बढ़ने की शंका होती है । अतएव ऐसी परिस्थितियों के लिए हो विभिन्न मंडपों का निर्माण किया जाता है। आधुनिक युग में गर्भगृह के सागने के भाग में लम्बे हॉल बनाने की प्रथा चल पड़ी है कमोवेश इसका उद्देश्य भो समान ही है। मन्दिर निर्माता को चाहिये कि मण्डपों का निर्माण सुविज्ञ शिल्पी से शास्त्रोक्त पद्धति से ही करायें। मण्डप चारों तरफ दीवार रो बन्ट भी होते हैं तथा दोनों ओर से खुले भी। * जिनप्रासादका मण्डपक्रम गर्भगृह के बाहर गूढ मण्डप का निर्माण किया जाना चाहिये । प्रासाद में गर्भगृह के आगे गूढ़ मण्डप की अर्थात् दीवार युक्त मण्डप की रचना करें। इसके उपरान्त त्रिक मण्डप अथवा चौकी मण्डप बनाये । चौकी मण्डप के आगे रंगमण्डप अथवा नृत्य मण्डप बनाना चाहिये। रंग मण्डप के आगे तोरण युक्त) बलाणक (द्वार के ऊपर का मण्डप) बगायें।* • मण्डपका अन्य क्रम जिन प्रासाद के गर्भगृह के आगे गूढ़ मण्डप बनायें । गूढ गण्डप के आगे त्रिक तीन (नव चौकी) बनायें। इसके आगे नृत्य मण्डप (रंग मण्डप) बनायें । इनके आगे तोरण युक्त द्वार के ऊपर का गण्डप (बलाणक) बनायें। # अन्यमत जिन प्रासाद के आगे (अर्थात् गर्भगृह) के आगे समवशरण बनायें । शुक नास (कवली गण्डप) के आगे गूढ़ मण्डप बनायें। इसके आगे चौकी मंडप बनायें तथा उसके आगे नृत्य मंडप बनायें। ## प्रासाद के दाहिनी एवं बायीं ओर शोभाभण्डप तथा गवाक्ष युक्त शाला (झरोखा युक्त ढोल के आकार की छत सहित आयताकार मन्दिर /कक्ष ) बनाना चाहिए । जिरामें गंधर्व देव गीत, नृत्य, मनोरंजन आदि करते हुए होयें। - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - *व. सा. ३/४९, ** प्रा. म.७/३, #प्रा. मं. २/२२. ##प्रासाद मंजरी/४५-४७, वि. सा. ३/५०
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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