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________________ देव शिल्प) १४६ यदि किसी कारण से देहरी की ऊंचाई कम करना पड़े तो भी कुम्भी तथा स्तंभ का मान पूर्ववत् ही रखें कम न करें। शेष मन्दिरों में चाहें वे सांधार हों या निरंधार, कुंभी की ऊंचाई देहरी के बराबर ही रखना चाहिये। * כבס उदुम्बर देहरी शंखावर्त अर्धचन्द्र देहरी के आगे बनाई जाने वाली अर्धचन्द्राकृति रचना को शंखावर्त कहते हैं । यह देहली के आगे की अर्धचन्द्राकार शंख और लताओं वाली आकृति होती है। इसका प्रमाण इस प्रकार रखना चाहिए - इसकी ऊंचाई खुरथर की ऊंचाई के समान रखें। द्वार की चौड़ाई के बराबर लम्बा अर्धचन्द्र बनायें तथा लम्बाई से आधा निर्गम रखें। लम्बाई के तीन भाग करके उसके दो भागों का अर्धचन्द्र बनायें तथा आधे आधे भाग के दो गगारक बनायें । अर्धचन्द्र और गगारक के बीच में पत्ते वाली बेलयुक्त शंख और कमलपत्र जैसी सुशोभित आकृति बनायें । गगारक देहली के आगे अर्धचन्द्राकृति के दोनों तरफ की फूल पत्ती की आकृति होती है। ** * उदुम्बरे क्षते कुम्भी स्तम्भकं नावपूर्वकम् । सान्धारे च निरन्धारे कुम्भिकान्तमुदुम्बरम् ॥ क्षीरार्णव अ. १०९ 1 ** खुरकेन समं कुर्यादर्धचन्द्रस्य चौच्छ्रतिः । द्वार व्यास समं दैर्ध्य निर्गमं स्यात् तदर्धतः । प्रा. मं. ३ / ४२ / श्रीरार्णव १०९/२४ द्विभागमर्धचन्द्रं च भागेन द्वौ गगारकौ । शंखपत्र समायुक्तं पद्माकारलंकृतम् ।। प्रा. मं. ३ / ४३ / क्षीरार्णव १०९ / २५
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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