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________________ देव शिल्प उदुम्बर (देहरी) का निर्माण __ मन्दिर के कोने के समसूत्र में देहरी बगवाना चाहिये । इसकी ऊंचाई कुम्भा की ऊंचाई के बराबर रखें। इसकी स्थापना करते समय इसके नीचे पंच रत्न रखें। यदि ऊंचाई कम करना इष्ट हो तो कुम्भा की ऊंचाई का आधा, एक तिहाई, अथवा एक चौथाई भाग कम कर सकते हैं। इससे ऊंची अथवा नीची देहरी बनाना उचित नहीं है । देहरी रथापना के समय शिल्पी का सम्मान करें। * देहरी ( उदुम्बर) की रचना देहरी की चौड़ाई के तीन भाग रामान करें। उसमें से मध्य के भाग के मध्य में अर्धचन्द्र की आकृति का तथा कमल पत्रों से युक्त मन्दारक बनायें। देहरी की ऊंचाई के आधे भाग में जाड्य कुम्भ तथा कर्णा, ऐसी दो थर बाली कण पीठ बनायें । मन्दारक के दोनों ओर एक- एक भाग में ग्रास मुख (कीर्ति गुख) बनाये। उसके पार्श्व न शाखा के रोल का स-पा बनायें। खुरथर के बराबर अर्धचन्द्र की ऊंचाई रखें तथा इसके ऊपर देहरी रखें । गर्भगृह के भूमि तल की ऊंचाई उदुम्बर से आधा, तिहाई या चौथाई रखें । बाहर के मण्डपों का शूमितल पीठ की ऊंचाई के समान रखें तथा रंग मंडप का भूमितल पीट के नीचे के अंतिम भाग में रखें।** ---------------------- *मूलकर्णस्य सूत्रेण कुम्भेनोदुम्बरः समः तदधः पंवरत्नानि स्थापयेच्छिल्पि पूजया ।। प्रा. मं. ३/३८ कुन्ास्यार्धे त्रिभागे वा पादे हीनं उदुम्बरः । तदर्धे कणक मध्ये पीठान्ते बाह्य भूमिका ॥ प्रा. मं.३/४१ उदुम्बरं तथा वक्ष्ये कुम्भिका तं तदुझ्या तस्यार्धन त्रिगागेन पादोनरहितं तथा ॥ उक्तं चतुर्वेधशस्तं कुर्वाचनमदुम्बरम्। अत्युत्तमाश्च चत्वारो न्यूनाटुष्यास्तथाधिका । अ. पृ.सूत्र ५२९ **द्वार व्यारा निभान मध्ये मन्दारको भवेत। वृत्तं मन्दारक कुयोट् मृणालं पद्मसंयुतं । प्रा. मं. ३/३९ जाड्य कुम्भः कणाली च कीर्तिवक्त्रद्वयं तथा। उदुम्बरस्य पार्श्व शाखायास्तलरूपकम् । प्रा. गं. ३/४० खुरको ट्टचन्द्र स्यात् तय स्यादुदु-बरः : उदुम्बराइँ राशे वा पादे वा गर्भभूमिका ॥ अ.पृ.सू. १२९/११ मण्डपेषु च सर्वेषु पीठान्ते रंगभूमिका। एषः गतिविधातव्या सर्वकामफलोदया। अ.सू.१२९/१२
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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