________________
(देव शिल्प)
मण्डोवर
प्रासाद/ मन्दिर का निर्माण पीठ पर किया जाता है। जगती पर पीठ का स्थान बनाया जाता है। पीठ को मन्दिर का आसन कहते हैं। पीठ के ऊपर दीवार बनायी जाती है। इस दीवार को ही मंडोवर की संज्ञा दी जाती है। मण्डोवर शब्द को समझने के लिये इसे तोड़ना होगा:- मण्ड अर्थात् पीठ या आसन । इसके ऊपर जो भाग बनाया जाये वह भण्डोवर कहलाता है । मन्दिर की प्रमुख दीवार अर्थात मंडोवर के ऊपर शिखर का निर्माण किया जाता है । कुम्भा के थर से लेकर छाद्य के प्रहार थर के मध्य का भाग मंडोवर कहलाता है। *
मण्डोवर की रचना
पीठ, वेट्बिन्ध तथा जंघा से मिलकर मण्डोवर की रचना होती है। मण्डोवर में तेरह थर होते हैं उनके नाम व प्रमाण इस प्रकार हैं। पीठ के ऊपर खुश से लेकर छाद्य तक मन्डोवर के २५ भाग करें। उन भागों में मण्डोवर की थर ऊंचाई पृथक-पृथक इस प्रकार है **
१.
२.
३.
४.
५.
६.
७.
८.
९.
खुर
कुम्भ
कलश
केवाल
मंची
जंघा -
छजी (छाजली) -
उर जंघा -
भरणी -
शिरावटी
१०.
११.
छज्जा
१२. वेराडु
५३.
पहारु
"अप. सू. १२६/१०
* व. सा. ३/१८-१९
भाग
३ भाग
१, १/२ भाग
१, १/२ भाग
१ १/२ भाग
५, १/२ भाग
१ भाग
१२५
२ भाग
१.१/२ भाग
१, १/२ भाग
२ भाग
१, १/२ भाग
१, १/२ भाग