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(देव शिल्प
अनुपात एवं क्रम इस प्रकार है.
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शब्द संकेत
जाड्यकुम्भ
पदम
ग्रास पट्टी
खुर
वेदिबन्ध
जगती की ऊंचाई में थरों का मान
जगती की ऊंचाई के २८ भाग करें तथा उसमें निर्माण की जाने वाली थरों का
कुभ
कलश
अंतर पत्र
कणी
पुष्पकण्ठ
सर्वप्रथम जाड्यकुम्भ कणी
पद्मपत्र सहित ग्रास पट्टी
खुरा
कुम्भा
कलश
अन्तरपत्र
केवाल
पुष्पकण्ठ
3
२८ भाग
कुल पुष्पकण्ठ से जाड्यकुम्भ का निर्गम आठ भाग का करना चाहिये ।
३ भाग
२ भाग
३ भाग
२ भाग
७ भाग
३ भाग
१ भाग
३ भाग
४ भाग
मन्दिर में दृष्टव्य पीठ (चौकी) का सबसे नीचे का गोटा,
पीठ के नीचे का बाहर निकलता गलताकार थर
१२०
कमलाकार गोटा या एक भाग
कीर्तिमुखों की पंक्ति, जलचर विशेष के मुख वाला दासा
वेदिबंध का सबसे नीचे का गोटा (प्रासाद की दीवार का प्रथम थर )
अधिष्ठान अर्थात् मन्दिर की गोटेदार चौकी
वेदिबन्ध का खुर के ऊपर का एक गोटा
पुष्पकोश के आकार का गोटा, जिसका आकार घट के समान है
दो प्रक्षिप्त गोटों के बीच एक अंतरित गोटा
कर्णक, थरों के ऊपर नीचे रखी जाने वाली पट्टी
दासा, अन्तराल