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________________ (देव शिल्प (११९) यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि मण्डप के क्रम से सवा, डेढ़ अथवा दुगनी चौड़ाई वाली जगती का निर्माण करे। जिन गन्दिरों में परिक्रमा (भगाणी) बगाई जाना है वहाँ पर ज्येष्ठ लगती ताले मन्दिरों में तीन भ्रभा बाना चाहिये । माटयम जगती में दो भणी रखें तथा कनिष्ठ में एक भ्रमणी रखें। * विशेष - प्रासाद के अनुरूप ही जगतीं बनाना चाहिये । जगतो चार, बारह, बांस, अट्ठाइस या छत्तीस कोने को बनायें। जगती की ऊंचाई का मान प्रथम विधि - एक से बारह हाथ तक चौड़ाई वाले प्रसाद को जगती की ऊंचाई प्रासाद से आधे भाग की रखें। तेरह से बाईस हाथ लक के प्रासाद की जगती की ऊंचाई प्रासात से तीरारे भाग की रखें । तेइंस से बनीरा हाथ तक के प्रासाद की जगली की ऊंचाई चौथाई भाग रखें। ३३ से ५० हाथ में पांचवां भाग रखें।** प्रासाद की चौड़ाई जगती की ऊंचाई हाथ में फुट में परो १२ २ से २४ आधा १३ तीसरा भाग २३ रो ३२ ४६से ६४ चौथा भाग ३३ से ५० ६६से २०० पांचया माग द्वितीय विधि # प्रासाद की चौड़ाई हाथ में कुट में जगती की ऊंचाई हाथ में कुट में १,१/२ ५ रो१२ १३ सो २४ १०-२४ २६-४८ ५०-१०० आधा भाग तीसरा भाग चौथा भाग ---------- ----------------------------------------- *प्रा .२/६.**प्र. नं.२/९, #1. मं. २/१० अ. सू. ५२५/२३-२६,
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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