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________________ (देव शिल्प (११८) प्रगती मन्दिर निर्माण के लिये भूमि का चयन कर लेने के पश्चात उसमें ऐसी भूमि का रेखांकन करना चाहिये, जिस पर मन्दिर बनाना है। इस निर्धारित भूमि पर एक ऊंचा चबूतरानुगा निर्माण किया जाता है । इस निर्माण को हो जगती कहते हैं। यह एक पीठनुमा निर्माण होता है तथा सामान्यतः पाषाण निर्मित होता है। यह एक ऐसा पीठ है जो कि मन्दिर के निर्माण के लिए उसी प्रकार आधार का काम करता है जिस प्रकार राजसिंहासन रखने के लिए एक उच्चस्थान का निर्माण किया जाता है। * जगती का आकार मन्दिर का निर्माण कार्य जैसी भूमि पर किया जायेगा उसी प्रकार की आकृति जगती की रखना चाहिये । मन्दिर का निर्माण निम्न आकार का किया जाता है - १. वर्गाकार आयताकार ३. वृत्ताकार ४. लम्ब वृत्ताकार (अण्डाकार) ५. अष्टकोण इसी प्रकार की आकृति जगती की रखें । यदि अष्टकोण मन्दिर बनाना हो तो जगती भी अष्टकोण रखना चाहिए। __ जगतीका मान जगती का मान प्रासाद की चौड़ाई से एक निश्चित अनुपात में रखना चाहिए । यह मान तीन प्रकार का है - १. कनिष्ठ मान- प्रासाद की चौड़ाई से ती-। गु-ना मान की जगती का मान कनिष्ट मान है। २. मध्यम मान - प्रासाद की चौड़ाई से चार गुना मान की जगतो का मान मध्यग मान है। ३. ज्येष्ठ गान - प्रासाद की चौड़ाई से पांच गुना मान की जगतो का मान ज्येष्ठ मान कहलाता है। विशेष - जिन (अरिहन्त) प्रभु के मन्दिरों में जगती छह से सात गुनी भी कर सकते हैं ।* ------..--- *प्रा. म. २/१ ** प्रा. गं. २/३ अ. स्...:५
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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