________________
(देव शिल्प
जगती की सजावट
पूर्वादि दिशाओं में प्रदक्षिणा क्रम से कर्ण अर्थात् कोने में दिक्पालों को स्थापित करना चाहिये। जगती को किले की भाति चारों तरफ सुशोभित करें। चारों दिशाओं में एक एक द्वार वाले वाकया मंडप बनायें। जल के निकास के लिए परनाले मगर के मुख वाले बनायें । द्वार के आगे तोरण एवं सीढ़ियों का निर्माण करना इष्ट है। मण्डप के आगे प्रतोली (पोल) बनाकर उसके आगे सीढ़ियां बनवायें। इसके दोनों तरफ गज (हाथी) की आकृति बनायें । प्रत्येक पद के अनुसार तोरण बनायें। तोरण के दोनों स्तम्भ की बीच की चौड़ाई का मान प्रासाद के गर्भगृह के मान अथवा दीवार के गर्भमान अथवा प्रासाद के मान का रखा जाता है।
यह जगती रुप वैदिका प्रासाद का पीठ रूप है। अतः इसे अनेक प्रकार के रूपों एवं तोरणों से सुसज्जित करें। तोरणों के झूलों में देवों की आकृतियां बनाना चाहिये।
* प्रा. मं. २/१५ - १६, १७-१८
कंदरिया महादेव मंदिर खजुराहो ( जगती )
१२९
*