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(देव शिल्प
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मन्दिर की वास्तु का निर्माण प्रारम्भ करने से पूर्व भूमि को इतना खोदें कि कंकरीली जमीन अथवा पानी आ जाये। कूर्म शिला को मध्य में स्थापित करें। (प्रा. नं १ /२८-२९ ) ईशान दिशा से प्रारंभ कर एक- एक शिला रखनी चाहिये । मध्य में धरणी शिला स्थापित करें। कूर्म को धरणी शिला के ऊपर स्थापित करें।
शिलाओं के नाम इस प्रकार हैं:- नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता, अजिता, अपराजिता, शुक्ला, सौभागिनी तथा धरणी। इन शिलाओं के ऊपर क्रम से वज्र, शक्ति, दण्ड, तलवार, नागपाश, ध्वजा, गदा, त्रिशुल इस प्रकार दिक्पालों के शस्त्रों को स्थापित करें। शिलाओं की स्थापना शुभ मूहूर्त में मंगल वाद्यध्वनि पूर्वक करें।
कूर्म शिला स्थापित करने के बाद उसके ऊपर एक नाली देव के सिंहासन तक रखी जाती है। इसे प्रासाद नाभि कहते हैं।
कूर्म शिला का माप
एक हाथ के चौड़ाई वाले प्रासाद में आधा अंगुल की कूर्म शिल। स्थापित करें। इसके बाद पंद्रह हाथ तक प्रत्येक हाथ पीछे आधा आधा अंगुल बढ़ायें। इसके बाद सोलह से इकतीस हाथ तक चौथाई अंगुल बढ़ाएं। इसके बाद अठ्ठारह हाथ के लिए प्रत्येक हाथ अंगुल का आठवां भाग अथवा एक जव के बराबर बढ़ाते जाएं।
जिस मान की कूर्म शिला आये उसमें उसका चौथाई भाग बढ़ाएं तो ज्येष्ठ मान की शिला होगी। यदि मान से उसका चौथाई कम कर दें तो कनिष्ठ मान आएगा।
एक हाथ से पचास हाथ तक प्रासाद के लिये धरणी शिला का प्रमाण विभिन्न शास्त्रों में किंचित अंतर से है:
प्रासाद हाथ में
१
-
२-१०
११-२०
२१- ५०
धरणी शिला के मान की गणना विधि - १
(क्षीरार्णव अ. १०१ के मत से)
फुट में
२
अंगुलो में / इंच में
४ अंगुल / इंच
४-२०
प्रति हाथ २-२ अंगुल / इंच बढ़ाएं प्रति हाथ १-१ अंगुल / इंच बढ़ाएं
२२-४०
४२-१००
प्रति हाथ १ / २ - १ / २ अंगुल / इंच बढ़ाएं
इस प्रकार के मान से शिला को वर्गाकार बनायें। इसके तीसरे भाग के बराबर मोटाई रखे । पिण्ड के आधे भाग में शिला के ऊपर रुपक एवं पुष्पाकृति बनायें । I
शिला का मान