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________________ (देव शिल्प मन्दिर निर्माण प्रारम्भ उपयुक्त भूमि पर मन्दिर निर्माण करने का निर्णय हो चुकने के पश्चात् शुभ मुहूर्त का चयन एवं गुरु की अनुमति लेना चाहिये । मन्दिर निर्माण करने की प्रक्रिया मन्दिर निर्माण के कार्य स्तरों पर निर्भर होती है। प्रक्रिया मन्दिर निर्माण प्रारंभ करते समय क्रमशः निम्नलिखित का निर्माण कर-॥ चाहिये - १. कूर्म शिला स्थापन २. खर ३. जगती भण्डोवर स्तम्भ ६. द्वार, खिड़की ७. मण्डप निर्माण, प्रतोली, वलाणक ८. संवरणा, वितान ९. गर्भगृह १०. शिखर निर्माण ११. कलश, पताका स्थापन १२. प्रतिमा, स्थापन १३. साजसज्जा कूर्म शिला स्थापन के उपरांत किया जाने वाला सभी कार्य दक्षिण से प्रारम्भ कर उत्तर की ओर करें। इसी भांति पश्चिम से प्रारम्भ कर पूर्व की ओर करें। इस प्रकार कार्य करने से सारे कार्य निर्विघ्न एवं यथा सगय पूर्ण होवेंगे। इसके विपरीत करने पर अनावश्यक व्यवधान आने की अत्याधिक संभावना रहेगी। ____ मन्दिर निर्माण के लिये वास्तु शास्त्र के सामान्य नियमों का अनुसरण करें तथा अपने आचार्य परमेष्टी गुरु एवं विद्वानजनों से निरन्तर परामर्श लेते रहें । ऐसा करने से कार्य सम्पादन में सुगमता रहती है। मन्दिर निर्माण में अपनी शक्ति अनुसार द्रव्य व्यय करके उत्तम देवालय को निर्माण करना उपयुक्त है।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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