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________________ (देव शिल्प - मन्दिर निर्माण में काष्ठ प्रयोग ___ मन्दिर, कलश, ध्वजादण्ड, ध्वजादण्ड की पाटली ये सभी एक ही लकड़ी के बनाये जाने चाहिये। सागवान, केसर, शीशम, खैर, अंजन, महुआ की लकड़ी इनके लिए शुभ मानी गई है।# निम्नलिखित काष्ठों का प्रयोग वास्तु के लिए नहीं करना चाहिये - १.हल, २.घानी/कोल्ह, ३.गाड़ी, ४. रेहट, ५.कंटीले वृक्ष ६. केला, ७. अनार, ८. नींबू, ९.आक, १०. इमली, ११. बीजोरा, १२.पोले फूल वाले वृक्ष, १३. बबूल, १४. बहेड़ा, १५. नीम, १६. अपने आप सूखा हुआ वृक्ष, १७.टूटा हुआ वृक्ष, १८. जला हुआ वृक्ष, १९. श्मसान के समीप का वृक्ष, २०. पक्षियों के घोंसले वाला वृक्ष, २१. खजूर आदि अतिलम्बा वृक्ष, २२. काटने पर दूध निकले ऐसा वृक्ष, २३: उदुम्बर (बड़, पीपल, पाकर, ऊमर, कठूमर). इन वृक्षों को -। तो मन्दिर में लगाना चाहिये न ही इनका काष्ठ निर्माण में प्रयोग करना चाहिये। इन वृक्षों की जड़ मन्दिर में प्रविष्ट हो अथवा मन्दिर के समीप हो तो भी क्षतिकारक है। इनकी छाया भी मन्दिर पर नहीं पड़ना चाहिये।* देव मन्दिर, कूप, बावड़ी, श्मसान, मठ, राजमहल की लकड़ी, पत्थर, ईंट आदि का तिलमात्र भी मन्दिर में उपयोग करना क्षतिकारक है। ऐसा करने से मन्दिर सूना रहता है उसमें पूजा प्रतिष्ठा नहीं हो पाती। यहां तक कि यदि घर में ये लगाये जायें तो गृहस्वामी उस मकान का उपयोग नहीं कर पाता।** - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - *हत पाणव समडमई अरहट्ट जंताणि कंटई तह य । परि वीरतयाण य कह जिजज्जा ।।द.सा. १/१४६ बिजेरि केलि दाहिपजंभीरी दोहलि, अंबलिया। बल बोरमाई कणयमया तह वि जो कुळा ।। 4. सा. १/१४७ एयाणं जइ वि जहा पाडिवसा उपविर-सड अहवा! छाया वा जम्मि गिहे कुलनासो हवा तत्धेव।। व. सा. १/१४८ सुमक्क भठठा दइदा पसाण खगनिलय खीर चिन्दीहा। जिंब बहेडा रुवस्वा जहु कहिज्जति मिहहेऊ ।। व. सा. १/१४९' *अन्य तास्तुत्युतं द्रव्यमव्य वास्ता न योजयत।। प्रासादे न भवेत् पूजागृहे च न वसे गृही1 समरांगण सूत्रसार पासाय व वाच. मसाण मठ रायमंदिराणं च । पाहाण इट्ट कट्ठा सरिसवमत्ता दिवसिज्जा ।। 1. सा. १/१५२ #मुहय इ० दारुपयं पासाट कलस दण्डमहि । सहकट्ठ सांदेड कीरं सीमिमखयरंजणं मह्यं ।। व.स. ३/३१
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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