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________________ देव शिल्प (११० समन्वय ___ वर्तमान युग में सभी वास्तु संरचनायें कंक्रीट से ही बनाई जा रही हैं। जबकि प्राचीन काल में निर्मित मन्दिरों में लोहे का नामो-निशान भी नहीं था। खजुराहो के मन्दिरों का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि वहां के मन्दिर केवल पाषाण निर्मित हैं उनमें मसाले से जुड़ाई गी नहीं है। कहीं-कहीं पर पाषाणों को ताम्बे की पट्टियों से कसा गया है। अतएव यह स्पष्ट है कि पाषाण निर्मित मन्दिर बनाना असंभव नहीं है। वर्तमान में वास्तु शिल्पशास्त्र की अल्प जानकारी होने के कारण शिल्पी कंक्रीट से ही निर्माण करने का उपक्रम करते हैं। ऐसी परिस्थिति में मन्दिर का गर्भगृह तथा शिखर बिना लोहे का ही बनाना चाहिये, इसमें श्रेष्ट द्रव्यों का ही निर्माण करना चाहिये । पाषाण भो श्रेष्ठ प्रकार का ही लेना चाहिये। प्राचीन शास्त्रों में दी गई गणनायें भी पाषाण निर्मित मन्दिर निर्माण के अनुरुप ही दी गई हैं अतः उनसे समन्वय रखने के लिये भी मन्दिर का निर्माण पाषाण से ही करना चाहिये। . प्रसंग वश यहां उल्लेख करना आवश्यक है कि दिर, यो निलो ता . वाले उपकरण जैसे घंटा, छत्र, सिंहासन भी लोहे के नहीं बनाना चाहिये। स्टेनलेस स्टील भी लोहे का ही एक प्रकार है अतः इसका प्रयोग भी उपकरणों के लिये नहीं करें। दरवाजे, पल्ले, खिड़की आदि में भी यथा संभव लोहे का प्रयोग न करें।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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