SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (देव शिल्प) (१०४) पांडकवनकेचैत्यालय । पांडकवन के चैत्यालयों की रचना अत्यंत सुन्दर हैं। इनमें एक उत्तम उठा हुआ परकोटा है। चारों दिशाओं में चार गोपुर द्वार हैं। चैत्यालय की सभी दिशाओं में प्रत्येक में १०८ ध्यजाएं लगो हैं। इन ध्वजाओं पर सिंह, हंस आदि उत्तग चिन्ह अंकित हैं। चैत्यालयों के समक्ष एक सुधर्मा नामक विशाल सभा मण्डप हैं उसके आगे नृत्य मण्डप है । नृत्य मण्डप के आगे स्तूप है । स्तूप के आगे चैत्यवृक्ष हैं । चैत्यवृक्ष के नीचे एक अत्यन्त मनोहारी जिन प्रतिमा विराजमान है। इसका आसन पर्यकासन है। त्याला अनेकों गवाक्ष, जाली, झालर, तोरण, मणिमाला एवं टिकाओं से अपनी अलग ही छांवे बना रहा है। इस चैत्यालय के पूर्वी भाग में एक शुद्ध जल से भरा ससेवर है जिसमें जलचर जीवों का अवस्था नहों है । * .. पांडुक वन के चैत्यालय - मेरुगिरी स्वरुप LAMAU पांडुक वन के चैत्यालय - तल माग --.............-- *(ति.प./४/१८५५ से १९३५, त्रि. सा./९८३ - १00)
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy