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(देव शिल्प
सप्तर्षि जिनालय मनु आदि सात ऋषियों की प्रतिमाएं संयुक्त रुप से एक साथ स्थापित की जाती है. इनकी प्रतिमाएं पृथक पृथक भी एक ही मन्दिर में स्थापित की जाती हैं।
सप्त ऋषियों के नाम इस प्रकार हैं :१. श्रीमनु
२. श्रीसुरमनु ३. श्रीनिचय
४. सर्वसुन्दर ५. जयवान
६. विनयलालस ७. जयमित्र
इन सातमुनियों की प्रतिमाएं खगासन में एक साथ निर्मित की जाती है। मुनियों के साथ प्रत्येका में पृथक-पृथक पोछी कमंडल रहना आवश्यक है । इन प्रतिमाओं को मंदिरों में रखा जाता है। इन प्रतिमाओं का स्वतन्त्र जिनालय सप्तर्षि जिनालय कहलाता है।
सप्तर्षि कीजैन मतानुसार कथा प्रभापुर नगर के राजा श्रीनन्दन के सात पुत्र थे । प्रीतेंकर महाराज के केवलज्ञान के अवसर पर देयों के आगमन के उपरान्त प्रतिबोध से पिता सहित सातों से दीक्षा ले ली।.ये ही सप्तऋषि कहलाते हैं। इनके प्रभाव से ही मथुरा नगरी में चमरेन्द्र यक्ष द्वारा प्रसारित महामारी रोग नष्ट हुआ।
पंच बालयति जिनालय
जिन परम्परा में पांच प्रतिमाओं की पंच बालयति प्रतिमा बनाने की परिपाटी है। ये तीर्थंकर पंच बालयति प्रतिमा बनाने की परिपाटी है। ये तीर्थंकर पंच बालयति कहलाते हैं। इन तीर्थंकरों ने संसार के समस्त वैभव को युवावस्था में ही त्याग दिया था तथा विवाह न करके बालब्रह्मचर्य का पालन किया व दीक्षा लेकर केवल ज्ञान प्राप्त किया। इन तीर्थंकरों के नाम एवं क्रम इस प्रकार हैं :
१२ वें तीर्थंकर वासुपूज्य स्वामी १९ वें तीर्थंकर मल्लिनाथ स्वामी २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ स्वामो २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ स्वामी
२४ वें तीर्थकर वर्धमान स्वामी इन तीर्थंकरों की संयुक्त प्रतिमा धातु या पाषाण की बनाई जाती हैं। इन तीर्थकरों की पृथक -पृथक प्रतिमा भी पृथक पृथक वेदियां बनाकर स्थापित की जाती हैं । मन्दिर निर्माण के अन्य नियम समान होते हैं । ये मन्दिर पंच बालयति मन्दिर कहलाते हैं ।