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(देव शिल्प
नवग्रह मन्दिर
सभी मनुष्यों का जीवन सुख-दुःख का समन्वित रुप होता है। पुण्य के उदय से हमें सुख की प्रप्ति होती है जबकि पाप कर्म के उदय से हमारे जीवन में दुखमय परिस्थितियां आती हैं। ज्योतिष शास्त्र में नवग्रहों के उदय अस्त के रूप में इसे प्रदर्शित किया जाता है। जब मनुष्य विपरीत ग्रहों के उदय के कारण दुखी होता है तो उसके निवारण के लिये जिनेन्द्र प्रभु की शरण में आता है। महान जैनाचार्यों नवग्रहों के उपद्रवों को शमनकरने लिये पृथक पृथक तीर्थंकरों की पूजा करने का उपदेश दिया है। तीर्थंकरों की पूजा करने से पापकर्म कटते हैं तथा पुण्य कर्मों का आगमन होता है। पुण्य के प्रभाव से हमारा विपरीत समय शीघ्र ही व्यतीत हो जाता है तथा अनुकूल समय का आगमन होला है।
जैनाचार्यों ने नवग्रहों से सम्बन्धित तीर्थंकरों की पूजा करने के लिये नक्ग्रह जिनालयों का उल्लेख किया है। इन जिनालयों में पृथक पृथक तीर्थकरों के चैत्यालय पृथक पृथक भी बना राकते हैं अथवा एक साथ भी उनकी स्थापना की जाती है।
नवग्रहों की शांति के लिये पूज्य तीर्थंकरों की नामावली ग्रह का नाम तीर्थंकर का नाम
पद्मप्रभ चन्द्र
चन्द्रप्रभ मंगल
वासुपूज्य बुध
विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, नभिनाथ, वर्धमान ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, सुपार्श्वनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ
पुष्पदंत शनि
मुनिसुव्रतनाथ
नेमिनाथ केतु
मल्लिनाथ, पार्श्वनाथ
जिस तीर्थंकर की प्रतिमा चैत्यालय में विराजमान करना है, उनकी स्थापना गर्भगृह में वेदी पर करें, अन्य तीर्थंकरों की प्रतिमा भी शास्त्र-विधि के अनुसार ही स्थापित करें। यह ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार से प्रतिमाओं के समक्ष स्तंभ वेध आदि न आयें। नवग्रह मन्दिर में सभी चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमायें इस प्रकार स्थापित करना चाहिये कि पृथक पृथक चैत्यालयों में एक-एक ग्रह के निमित्त प्रतिमाओं की स्थापना हो सके। इस प्रकार के जिनालयों का निर्माण कराने की शक्यता न हो तो सन्बंधित तीर्थकर की प्रतिमा स्थापित करें। यह भी संभव न हो तो उन तीर्थकर की विशेष पूजा पाठ अवश्य करें ताकि विपरीत ग्रहों के प्रभाव से शीघ्र ही मुक्ति मिलकर ग्रहों की अनुकूलता हो सके।
वृहस्पति