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देव शिल्प)
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ॐ
मंदिर
ॐ की ध्वनि एक विशिष्टं नाद है। इसे बीजाक्षर भी माना जाता है। तीर्थंकर प्रभु की दिव्य ध्वनि भो ॐकार रूप ही निःसृत होती है । ॐ शब्द की व्युत्पत्ति करने पर पांचों परमेष्ठियों के प्रथम नामाक्षर होते है -
37 +34 + 3πT +3 +44 += ओम् अरिहन्त + अशरीरी + आचार्य + उपाध्याय मुनि इस तरह ॐ ध्वनि में पांचो परमेष्ट्रि समाहित हो जाते है। समस्त भारतीय दर्शन ॐ की महत्ता को स्वीकार करते है। ॐ जिनालय में गर्भगृह में ॐ शब्दाक्षर की पाषाण अथवा धातु की प्रतिमा स्थापित की जाती है 1 ॐ की आकृति को एक चौकौर वर्गाकार, अष्टास अथवा वृत्ताकार वेदी पर स्थापना करें।
ॐ की रचना
ॐ की वर्तमान प्रचलित रचना
चंद्राकार में सिद्ध की स्थापना करें। ॐ की ऊपर की पंक्ति में अरिहन्त की स्थापना करें। मध्य में आचार्य की स्थापना करें। ॐ की मात्रा में उपाध्याय की स्थापना करें। ॐ के नीचे की पंक्ति में मुनि की स्थापना करें । परमेष्ठी प्रतिमाएं सही आकार में ही बनायें ।
ॐ मंदिर में मीतरी सजावट एकदम सादगी पूर्ण करें ताकि ध्यानप्रिय साधक का चित एकाग्र हो राके। मंदिर की अन्य रचना सामान्य रीति से करें।
प्राकृत शास्त्रों में ॐ की रचना किंचित अन्तर से मिलती है।
सिद्ध
अरिहंत
उपाध्याय
आचार्य
ॐ
मुनि
प्राकृत भाषा में ॐ की रचना
सिद्ध
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अरिहंत
आचार्य
मुनि
उपाध्याय