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(देव शिल्प
मानस्तम्भ जिनेन्द्र प्रभु की धर्मसभा समवशरण कहलाती है। यह सौधर्मेन्द्र के निर्देश पर कुबेर द्वारा निर्मित की जाती है। इसमें जिनेन्द्र प्रभु मध्य में विराजते हैं तथा देवों की विक्रिया से चारों दिशाओं में सामने ही मुख प्रतिभासित होता है। प्रभु की दृष्टि के समक्ष धर्मसभा से बाहर के भाग में चारों दिशाओं में एक एक मानस्तंभ निर्मित होता है। यह ऊंची एवं भव्य मनोहारी रचना दर्शन मात्र से शांति का अनुभव कराती है तथा इसके दर्शन से अभिमान समास होकर सद्ज्ञान की उपलब्धि होती है।
जिनेन्द्र प्रभु का जालय अर्थात् जिन मन्दिर भी जिन समवशरण की प्रतिकृति मानी जाती है। जिन मन्दिर के समक्ष मुख्य द्वार के सामने भानस्तंभ निर्माण करने की परम्परा सर्वत्र है। मानस्तंभ के ऊपरी भाग में स्थित जिन प्रतिमाओं के दर्शन करके उपासक बिना मन्दिर में प्रवेश किये भी शांति का अनुभव करता है। मान स्तंभ के दर्शन करते हो जिन मन्दिर में प्रवेश कर जिनेन्द्र प्रभु के दर्शन करने की भावना होती है। अतएव सर्वत्र ही मुख्या जिनालय के समक्ष मानस्तंभ
Pintency स्थापित किए जाते हैं । देवगढ़ आदि स्थानों के
1367 कलात्मक मान स्तंभ दर्शनीय हैं तथा स्थापत्य कला के वैभव को बतलाते हैं।
जैन शास्त्रों में अकृत्रिम जिन चैत्यालयों में भी मान स्तंभ का वर्णन मिलता है।
मानस्तंभ निर्माणकरते समय
ध्यासब्य निर्देश १. मन्दिर के द्वार के ठीक सामने समसूत्र में मान स्तंभ बनायें। २. मान स्तंभ की ऊंचाई का मान मूलनायक प्रतिमा के मान के बारह गुने के बराबर होना चाहिये। ३. मान स्तंभ वृत्ताकार, चतुरस्र अथवा अष्टास होना चाहिये।
मानस्तंभ
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