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(देव शिल्प
समवशरण मंदिर की वास्तु रचना जिनेन्द्र प्रभु की धर्मसभा की रचना कुबेर करता है। उसी दिव्य रचना की मानव निर्मित प्रतिकोते समवशरण मंदिर के रुप में बनाई जाती है।
समयशर मंदिर चतुर्मुखी प्रासाद होता है। इसकी रचना पूर्णतः वृत्ताकार होती है। इसमें आठ भूपियां बनाई जाती हैं। इनका क्रम सोपानवत बनाया जाता है। बारह विभाग श्रोताओं के कोठों के रूप में बनाये जाते हैं। तीर्थंकर प्रभु की चार प्रतिमाएं पद्मासन में चारों दिशाओं को मुख करके स्थापित की जाती हैं | चारों देशाओं में गा-स्तंभ की रचना की जाती है। तीर्थकर प्रभु का आसन कमल का होता है। ऊपर छन्त्र तथा अशोक वक्ष बनाये जाते हैं। कोठों में श्रोताओं की प्रतिकतियां बनाकर अत्यंत सुन्दर रूप से स्थापित की जाती हैं। श्रोताओं का मुख भगवान की ओर रखा जाता है ।
समवशरण की रचना वास्तविक समवशरण के अनुपात के अनुरूप ही करना चाहिए। रचना की रंग योजना मोरम होनी चाहिए। अधिक गाढ़े अथवा काले रंगों का प्रयोग कदापि न करें । चित्रकारी आदि के रंग भी इस प्रकार रांयोजित करें कि ये नयनाभिराम हों।
समवशरण की रचना का आकार सामान्यतः लगभग २१ हाथ (४२ फुट) के व्यास में करना चाहिए जिसमें भीतरी गंध कुटी जहां भगवान एवं श्रोतावर्ग बैठते हैं वह १५ हाथ (३० फुट) हो.॥ चाहिए।
समवशरण वेदी
समवशरण