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________________ (दव शिल्प देवकन्याएं तथा अगली आठ में कल्पवासी देवकन्याएं नृत्य करती हैं। इसके आगे यक्ष देवों से रक्षित तीसरी वेदी है । इसके आगे ध्वज भूमि है जिसकी प्रत्येक दिशा में सिंह, गज आदि दस प्रकार के चिन्हों से अंकित प्रत्येक चिन्ह की १०८-१०८ ध्वजाएं हैं तथा प्रत्येक ध्वजा १०८ क्षुद्रध्वजाओं से संयुक्त है। इसके आगे.प्रथम कोट सरीखा ही तृतीय कोट है जिसके आगे छटवीं कल्प भूमि है । यह दस भांति के कल्पवृक्षों तथा वापिका, प्रासाद, सिद्धार्थ वृक्षों (चैत्यवृक्षों) से शोभायमान हो रही है। इसमें प्रत्येक वीथी से लगकर चार-चार नाट्यशालाएं हैं जिनमें ज्योतिष देवकन्याएं नृत्य करती हैं। इसके आगे भवनधासो देवों से रक्षित चौथी वेदी हैं।। इसके आगे भवनभूमि है जिसमें अनेकों ध्वजा पताका युक्त भवन तथा पार्श्व भागों में प्रत्येक वीथी के मध्य में ९-९ स्तूप हैं जो जिन प्रतिमाओं से संयुक्त हैं। ये कुल ७२ हैं। इसके आगे चतुर्थ कोट हैं जो कल्पवासी देवों से रक्षित हैं। इसके आगे श्रीमण्डप भूमि है। इसमें कुल १६ दीवारें तथा उनके मध्य १२ कक्ष हैं इनमें पूर्व दिशा से प्रथम कक्ष गिना जाता है। इनमें बैठने वाले श्रोताओं का वर्णन पूर्व में किया जा चुका है। इसके आगे पंचम वेदी है। इसके आगे प्रथम पीठ है। इस पर १२ कक्ष तथा ४ वीथियों के सामने १६-१६ सीढ़ियां हैं। इस पीठ पर चारों दिशाओं में एक-एक यक्षेन्द्र स्थित हैं जो सिर पर धर्मचक्र धारण कर खड़े हैं। इस पोठ पर चढ़कर बारह गण प्रदक्षिणा देते हैं। प्रथम पीठ के ऊपर दूसरा पोठ है जिसमें चारों दिशाओं सीढ़ियां हैं। सिंह, वृषभ आदि ध्यजाएं तथा अष्ट मंगल द्रव्य, नवनिधि, धूपघट आदि इसी पीठ पर हैं। इसके ऊपर तीसरी पीठ पर चारों दिशाओं में आठ-आठ सीढ़ियां है। इस पीट के ऊपर गन्धकुटी है । यह अनेक ध्वजाओं से सुशोभित है । गन्धकुटी के मध्य में पादपीट सहित सिंहासन है जिस पर भगवान अंतरिक्ष में चार अंगुल अंतर करके विद्यमान हैं।
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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