________________
(देव शिल्प)
७.
भवनवासी देव
८.
व्यन्तर देव
९.
ज्योतिषी देव
१०. कल्पवासी देव
११. मनुष्य
१२. पशु-पक्षी
समवशरण की रचना
समवशरण की सामान्य भूमि वृत्ताकार होती है। उसकी प्रत्येक दिशा में सीढ़ियां होती हैं। इनकी संख्या २०,००० हैं। इसमें चार कोट, पांच वेदियां होती है इनके मध्य आठ भूमियां तथा सर्वत्र अन्तर भाग में तीन-तीन पीट होते हैं।
प्रत्येक दिशा में सोपान के लगाकर आठवीं भूमि के भीतर गन्धकुटी की प्रथम पीठ तक एक-एक वीथी (सड़क) होती है। वीथियों के दोनों तरफ वीथियों के लम्बाई के बराबर दो वेदियां होती हैं।
८०
आठों भूमियों के मध्य में अनेक तोरणद्वारों की रचना होती है।
कोटों के नाम तथा विवरण
प्रथम धूलिशाल कोट इसके चारों दिशाओं में चार तोरणद्वार हैं। जिनके बाहर मंगल द्रव्य, नवनिधि तथा धूपघट से युक्त देवियों की प्रतिमायें हैं। दो द्वारों के मध्य के स्थान में नाट्य शालायें हैं। इनके द्वारों की रक्षा का दायित्व ज्योतिष देवों का है।
-
नृत्य करती हैं।
धूलिशाल कोट के भीतर चैत्य प्रासाद भूमियां हैं। जहां पांच-पांच प्रासादों के अन्तराल से एक-एक चैत्यालय स्थित है।
उपरोक्त नाट्यशालाओं में ३२ रंगभूमियां हैं। प्रत्येक में ३२ भवनवासी देव कन्याएं
प्रथम चैत्य प्रासाद भूमि के बहुमध्य भाग में चारों वीथियों के मध्य में गोलाकार मानस्तम्भ स्थित है ।
इस धूलिशाल कोट से आगे प्रथम वेदी का निर्माण धूलिशाल कोट के सरीखा ही है। इस वेदी के आगे खातिका भूमि है, जिसमें जल से भरी हुई खातिकाएं हैं। इसके आगे दूसरी बेदी
है ।
दूसरी वेदी के आगे लता भूमि है। यह क्रीड़ा पर्वत एवं वापिकाओं से शोभायमान है। इसके आगे दूसरा कोट है जो प्रथम कोट की भांति है। इसकी रक्षा यक्ष देव करते हैं।
इसके आगे उपवन नाम की चौथी भूमि है। यह अनेक प्रकार के वन, उपवन एवं चैत्यवृक्षों से सुसज्जित है। यहाँ १६ नाट्यशालाएं हैं, प्रथम आट नाट्यशालाओं में भवनवासी