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________________ (देव शिल्प मन्दिर की अभिमुख दिशा निर्णय गन्दिर निर्माण का निर्णय करते समय प्रवेश दिशा का निर्णय करना आवश्यक है। मन्दिर का प्रवेश गर्भगृह की सीध में होता है। गर्भगृह में स्थित प्रतिमा की दृष्टि द्वार की अपेक्षा सही स्थान पर होना आवश्यक होता है। जिस ओर मूलनायक प्रभु का मुख होगा, उसी दिशा में मन्दिर का भी मुख होगा तथा उसी तरफ मन्दिर का मुख्य द्वार होगा। जिनेन्द्र प्रभु की प्रतिमाओं का मुख सिर्फ दो ही दिशाओं में किया जाना मंगलकारी है :- ये दिशाएं हैं - . पूर्व २. उत्तर किन्हीं किन्हीं मन्दिरों में तथा मा स्तंभ में भगवान की चार प्रतिमाएं चारों दिशाओं में मुख करके स्थापित की जाती है । ऐसी प्रतिगा एवं मन्दिर सर्वतोभद्र प्रतिमा कहलाती हैं। ऐसी स्थिति में मन्दिर का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखना चाहिये। किसी भी स्थिति में भगवान का मुख विदिशाओं में नहीं करना चाहिये। अन्य दिशाओं में भगवान का मुख नहीं रखना चाहिये। भगवान का मन्दिर समवशरण का प्रतीक होता है । समवशरण में भी भगवान का श्रीमुख पूर्व की ओर होता है किन्तु भगवान के दिव्य अतिशय से चारों दिशाओं की ओर मुख प्रतीत होता है। दर्शक को भगवान का मुख अपने सामने ही प्रतीत होता है। इसी प्रकार का सर्वतोभद्र मन्दिर सर्वकल्याण का कारण है। जैनेतर परम्पराओं में अभिमुख जैनेतर परापराओं में विदिशा एवं अन्य दिशाओं में देवों का मुख करके स्थापना की जाती है। वानरेश्वर हनुमान की प्रतिमा नैऋत्य दिशाविगुख स्व राकते हैं किन्तु अन्य किसी देव की स्थापना विदिशाचिमुख न करें । ब्रह्मा, विष्णु, शिव, सूर्य, इन्द्र, कार्तिकेय देव पूर्व अथवा पश्चिमाभिमुख रख सकते हैं। इनका मुख उत्तर-दक्षिण में नहीं करें।* गणेश, भैरव, चंडी, नकुलीश, नवग्रह, मातृदेवता, कुबेर का मन्दिर दक्षिणाभिमुख बना सकते हैं।** नगर में मन्दिर स्थापना तथा अभिमुख नगर के मध्य में अथवा नगर के बाहर स्थापित जैन मन्दिर में भगवान का मुख नगर की ओर होना मंगलकारक है। गणेश, कुबेर एवं लक्ष्मी की स्थापना नगर द्वार पर करना चाहिये। यह स्मरण रखें कि भगवान की पूजा भी उत्तर अथवा पूर्व की ओर मुख करके करना चाहिये। # चारों दिशाओं की ओर मुख वाले वीतराग देव के प्रासाद नगर में होना सुख कारक होता है। (इसका तात्पर्य सर्वतोभद्र प्रासाद से है।) ## *प्रा. म.२/३.६.**प्रा.म. २/३९,#प्र.मं.२/३९,##उ.श्रा. १०६
SR No.090130
Book TitleDevshilp
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevnandi Maharaj
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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