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मिथ्यात्वरूपी बादलों का निवारण करनेवाली है, उसको हटानेवाली है। उस अमृत-समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन कस।
वह ज्ञान कल्याणक रूपी वृक्ष के उद्यान/बगीचे को धारण करनेवाली है और भव-समुद्र से पार ले जाने के लिए, तारने के लिए नौका के समान है। समस्त बंधनों को विवेक की उत्कृष्ट छैनी से काट देनेवाली है और वह मोक्ष-महल में जाने के लिए सीढ़ी है । उसको संभालो । उस अमृत-समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो।
वह जिनवाणी सूर्य के विकाररहित प्रकाश की भाँति स्व और पर दोनों के स्वरूप को स्पष्टतः दिखानेवाली है। जिस प्रकार चन्द्रमा की शीतल किरणों से कमलिनी खिलती है उसी प्रकार जिनवाणी मुनियों के मन को आनन्दित करनेवाली है, समतारूपी आनन्द-पुष्पों की सुन्दर वाटिका है, उस अमृत- समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो।
जिसकी स्तुति/सेवा करने से अपने स्वरूप को अनुभूति होती है और अविवेक-अज्ञान का नाश होता है; उसको तीन लोक का हित करनेवाली जान कर तीन लोक के स्वामी भी पूजा करते हैं । उस अमृत-समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो।
दौलतराम कहते हैं कि यह जिनवाणी पतितजनों का उद्धार करनेवाली है। वज्रधारी इन्द्र की करोड़ों जिह्वाएँ भी उस जिनवाणी की महिमा का वर्णन करने में असमर्थ हैं। उसका अल्पमति किस भौति वर्णन कर सकते हैं अर्थात् नहीं कर सकते। उस अमृत-समान जिनवाणी का नित्य आस्वादन करो।
गद - रोग, कलिल = पाप, पैनी = तीखी, बेक्त - जानना, पत्रिधारी = इन्द्र।
दौलत भजन सौरभ