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छन्द-दृष्टि से दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : पाठ-निर्धारण असमाहिट्ठाणनिज्जुत्ति
११ Verses सबलदोसनिज्जुत्ति
3 Verses आसायणनिज्जुत्ति
१० Verses गणिसंपयानिज्जुत्ति
.७Verses चित्तसमाहिट्ठाणनिज्जुत्ति
४ Verses उवासगपडिमानिज्जुत्ति
११ Verses भिक्खुपडिमानिज्जुत्ति
< Verses पज्जोसवणाकप्पनिज्जुत्ति
६७ Verses मोहणिज्जट्ठाणनिज्जुत्ति
< Verses आयतिट्ठाणनिज्जुत्ति
१५ Verses ... आचारदसाणं निज्जुत्ती ।।छ।।गाथा १५४।। (योग १४४)
जैन साहित्य का बृहद इतिहास, भाग १ का विवरण भी सम्भवत: इसी स्रोत पर आधारित है। इसलिए १५४ गथाओं का उल्लेख सही अर्थों में १४४ गाथाओं का ही माना जाना चाहिए। कापडिया का उत्तरवर्ती (Canonical Literature) विवरण निश्चित रूप से अपने पूर्ववर्ती विवरण पर ही आधारित होगा। परन्तु मुद्रण-दोष ने विवरण को पूरी तरह असङ्गत बना दिया है। उनके विवरण से प्रथम दृष्टि में इस नियुक्ति में १२ अध्ययन होने का भ्रम हो जाता है-९,११,३,१०,७,४,११,८,६,७,८
और १५। साथ ही इन गाथाओं का योग भी ९९ ही होता है जबकि ध्यान से देखने पर पता चल जाता है कि यह विसङ्गति निश्चित रूप से मुद्रण-दोष से उत्पन्न हुई है। इसमें शुरु का ९ और नौवें, दसवें क्रम पर उल्लिखित ६, ७ के मध्य का विराम, अनपेक्षित है। इस ९ को गणना से अलग कर देने और ६, ७ के स्थान पर ६७ पाठ हो जाने पर अध्ययन संख्या १० और गाथा संख्या १४४ हो जाती है और कापडिया के उक्त दोनों विवरण एक समान हो जाते हैं। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि इस नियुक्ति की गाथा-संख्या १४४ और १४१ उल्लिखित है। यह संख्या-भेद पाँचवें अध्ययन में क्रमश: चार (१४४) और एक (१४१) गाथा प्राप्त होने के कारण है।
द०नि० की गाथा सं० निर्धारित करने के क्रम में नि०भा०चू०.का विवरण भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। प्रस्तुत नियुक्ति के आठवें 'पर्युषणाकल्प अध्ययन की सभी गाथायें नि०भा० के दसवें उद्देशक में उसी क्रम से 'इंमा णिज्जुत्ती' कहकर उद्धृत हैं। नियुक्ति के आठवें अध्ययन में ६७ गाथायें और नि०भा० के दसवें उद्देशक के सम्बद्ध अंश में ७२ गाथायें हैं। इसप्रकार नियुक्ति गाथाओं के रूप में उद्धृत पाँच