________________
तृतीय अध्याय
छन्द-दृष्टि से दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : पाठ-निर्धारण
छन्द की दृष्टि से दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति के अध्ययन से पूर्व इसकी गाथा संख्या पर विचार कर लेना आवश्यक है। इस नियुक्ति के प्रकाशित संस्करणों एवं जैन विद्या के विद्वानों द्वारा प्रदत्त इसकी गाथा संख्या में अन्तर है। इसके दो प्रकाशित संस्करण उपलब्ध हैं- मूल और चूर्णि सहित मणिविजयगणि ग्रन्थमाला, भावनगर १९५४ संस्करण' और 'नियुक्तिसङ्ग्रह' शीर्षक के अन्तर्गत सभी उपलब्ध नियुक्तियों के साथ विजयजिनेन्द्रसूरि द्वारा सम्पादित लाखाबावल १९८९ संस्करण।
भावनगर संस्करण में गाथाओं की संख्या १४१ और लाखाबावल संस्करण में १४२ है। जबकि वास्तव में लाखाबावल संस्करण में भी १४१ गाथायें ही हैं। प्रकाशन-त्रुटि के कारण क्रमाङ्क १११ छूट जाने से गाथा क्रमाङ्क ११० के बाद ११२ मुद्रित है। फलत: गाथाओं की संख्या १४१ के बदले १४२ हो गई है, जो गलत है। अधिक सम्भावना यही है कि लाखाबावल संस्करण का पाठ, भावनगर संस्करण से ही लिया गया है। इसलिए भी गाथा संख्या समान होना स्वाभाविक है।
'Government Collections of Manuscripts'3 में एच०आर०कापडिया ने इसकी गाथा संख्या १५४ बताई है। 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग-१ में भी इसकी गाथा सं० १५४ है। 'जिनरलकोश' में यह संख्या १४४ है। कापडिया द्वारा अपनी पुस्तक 'A History of the Jaina Cononical literature of the Jainas'' में इस नियुक्ति की गाथा संख्या के विषय में प्रदत्त विवरण अत्यन्त भ्रामक है। वहाँ दी गई अलग-अलग अध्ययनों की गाथाओं का योग ९९ ही होता है।
वस्तुत: 'Government Collections' में प्राप्त अलग-अलग अध्ययनों की गाथाओं का योग १४४ ही है, १५४ का उल्लेख मुद्रण-दोष के कारण है। 'गवर्नमेण्ट कलेक्शन' का विवरण द्रष्टव्य है -
".......this work ends on fol. 5; 154 gāthas in all; Verses of the different sections of this nijjutti corresponding to the ten sections of Daśāśrutaskandha are separately numbered as under : ..