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छेदसूत्रागम और दशाश्रुतस्कन्ध '
४३ दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र के विच्छेद का उल्लेख न होना इस तथ्य का प्रमाण है कि इस छेदसूत्र का विच्छेद नहीं हुआ है। स्रोत
द.चू.४ के अनुसार दशाश्रुत, व्यवहार और बृहत्कल्पसूत्र- ये नवम प्रत्याख्यानपूर्व से उद्धृत किये गये हैं। इसप्रकार इसका स्रोत नवम पूर्व है। विषय-वस्तु ___ स्थानाङ्गसूत्र में उल्लिखित दशाश्रुतस्कन्ध के दसों दशाओं के शीर्षक वर्तमान दशाश्रुतस्कन्ध से साम्य रखते हैं। ये दशायें इसप्रकार हैं- १. असमाधिस्थान, २. शवलदोष, ३. आशातना, ४. गणिसम्पदा, ५. चित्तसमाधि, ६. उपासकप्रतिमा, ७. भिक्षुप्रतिमा, ८. पर्युषणाकल्प, ९. मोहनीयस्थान १०. और आयति स्थान। . __प्रथम दशा में २० असमाधिस्थान हैं। दूसरी दशा में २१ शबलदोष हैं। तीसरी दशा में ३३ आशातनायें हैं। चौथी दशा में आचार्य की आठ सम्पदा और चार कर्तव्य कहे गए हैं तथा चार कर्त्तव्य शिष्य के कहे गए हैं। पाँचवीं दशा में चित्त की समाधि होने के १० बोल कहे हैं। छठी दशा में श्रावक की ११ प्रतिमाएँ हैं। सातवीं दशा में भिक्ष की १२ प्रतिमाएँ हैं। आठवीं दशा का सही स्वरूप व्यवच्छिन्न हो गया या विकृत हो गया है। इसमें साधुओं की समाचारी का वर्णन था इस दशा का उद्धृत रूप वर्तमान कल्पसूत्र माना जाता है। नौवीं दशा में ३० महामोहनीय कर्मबन्ध के कारण हैं। दसवी दशा में ९ निदानों का निषेध एवं वर्णन है तथा उनसे होने वाले अहित का कथन है। दशा-क्रम से इस छेदसूत्र की संक्षिप्त विषय-वस्तु निम्न प्रकार हैप्रथमदशा
साध्वाचार (संयम) के सामान्य दोषों या अतिचारों को असमाधिस्थान कहा गया है। इनके सेवन से संयम निरतिचार नहीं रहता है। बीस असमाधिस्थान निम्न हैं१. शीघ्रता से चलना, २. अन्धकार में चलते समय प्रमार्जन न करना, ३. सम्यक् रूप से प्रमार्जन न करना, ४. अनावश्यक पाट आदि ग्रहण या रखना, ५. गुरुजनों के सम्मुख बोलना, ६. वृद्धों को असमाधि पहुँचाना,
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