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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन ७. पाँच स्थावर कायों की सदा यतना नहीं करना अर्थात् उनकी विराधना करना,
करवाना,
क्रोध से जलना अर्थात् मन में क्रोध रखना, ९. क्रोध करना अर्थात् वचन या व्यवहार द्वारा क्रोध को प्रकट करना, १०. पीठ पीछे निन्दा करना, ११. कषाय या अविवेक से निश्चयकारी भाषा बोलना, १२. नया कलह करना, १३. उपशान्त कलह को पुनः उभारना, १४. अकाल (चौंतीस प्रकार के अस्वाध्यायों) में सूत्रोच्चारण करना, १५. सचित्त रज या अचित्त रज से युक्त हाथ-पाँव का प्रमार्जन न करना अर्थात्
प्रमार्जन किए बिना बैठ जाना या अन्य कार्य में लग जाना, १६. अनावश्यक बोलना, वाक्युद्ध करना एवं उच्च स्वर से आवेश युक्त बोलना, १७. सङ्घ या सङ्गठन में अथवा प्रेम सम्बन्ध में भेद उत्पन्न हो ऐसा भाषण करना, १८. कलह करना, तुच्छतापूर्ण व्यवहार करना, १९. मर्यादित समय के अतिरिक्त भी आहार ग्रहण करना, २०. अनेषणीय आहार-पानी आदि ग्रहण करना अर्थात् एषणा के छोटे दोषों की
उपेक्षा करना। द्वितीयदशा
शबल, प्रबल, ठोस, भारी, विशेष बलवान आदि लगभग एकार्थक शब्द हैं। संयम के शबल दोषों का अर्थ है- सामान्य दोषों की अपेक्षा बड़े दोष या विशेष दोष। ये दोष संयम के अनाचार रूप होते हैं। इनका प्रायश्चित्त भी गुरुतर होता है तथा ये संयम में विशेष असमाधि उत्पन्न करने वाले हैं। शबल दोष संयम में बड़े अपराध हैं और असमाधिस्थान संयम में छोटे अपराध हैं। दूसरी दशा में प्रतिपादित इक्कीस शबल दोष निमप्रकार हैं
१. हस्तकर्म, २. मैथुन सेवन, ३. रात्रिभोजन, ४. साधु के निमित्त बने आधाकर्मी आहार-पानी आदि का ग्रहण, ५. राज प्रासाद में गोचरी, ६. सामान्य साधु-साध्वियों के निमित्त बने उद्देशक आहार आदि लेना या साधु के लिए क्रयादि क्रिया उद्देशक आहार आदि लेना या साधु के लिए क्रयादि क्रिया हो ऐसे आहारादि पदार्थ लेना, ७. बार-बार तप-त्याग आदि का भङ्ग करना, ८. बार-बार गण का त्याग और स्वीकार,