________________
१८८ . दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन ।।१०।।दशम नवपापनिदानस्थानाध्ययननियुक्तिः।। णामं ठवणा जाई दव्वे भावे य होइ बोधव्वा । ठाणं पुव्वुद्दिष्टुं पगयं पुण भावट्ठाणेणं ॥१२७॥ दव्वं दव्वसभावो भावो अणुभवणओहतो दुविहो। अणुभवण छव्विहो उहओ उ संसारिओ जीवो॥१२८॥ जाती आजातीया पच्चाजातीय होइ बोधव्वा। जाती संसारत्था मासो जाती जम्ममन्नयरं॥१२९॥
नाम स्थापना जातिः द्रव्ये भावे च भवति बोधव्यम् । स्थानं पूर्वोद्दिष्टं प्रकृतं पुनः भावस्थानेन ॥१२७॥ द्रव्यं द्रव्यस्वभावो भावो अनुभवनओघतो द्विविधः । अनुभवनो षड्विधः ओघतस्तु सांसारिको जीवः ॥१२८॥ जातिराजातिश्च प्रत्याजातिः भवति बोधव्या । जातिः संसारस्थानां असौ आजातिः जन्मान्तरम् ॥१२९॥
(निक्षेप की दृष्टि से) जाति या उत्पत्ति नाम, स्थापना, द्रव्य और भावपूर्वक होती है (यह) जानना चाहिए। स्थान निक्षेप की दृष्टि से पूर्व में कथन किया गया है। प्रस्तुत (अध्ययन में भाव स्थान की दृष्टि से) जाति का कथन किया जायगा।।१२७।।
द्रव्यदृष्टि से (जाति या उत्पत्ति का अर्थ है उत्पन्न हुए) द्रव्य का स्वभाव, भाव दृष्टि से उत्पत्ति अनुभवन (अर्थात् निदान कृत कर्म फल का भोग) और सामान्य दो प्रकार की होती है। अनुभवन छ: प्रकार का होता है और सामान्य उत्पत्ति सांसारिक जीवों की होती है।।१२८।।
जाति अर्थात् उत्पत्ति तीन प्रकार की होती है- जाति, आजाति और प्रत्याजाति। सांसारिकों की नरकादि चार गतियों में उत्पत्ति जाति है, सम्मूर्छ, अगर्भ, उपपात आदि अन्य प्रकार से जन्म आजाति है।।१२९।।