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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति मूल-छाया-अनुवाद १७१ एत्थ तु पणगं पणगं कारणियं जा सवीसतीमासो। सुद्धदसमीट्ठियाण व आसाढीपुण्णिमोसरणं ॥६७॥ इय सत्तरी जहण्णा असीति णउती दसुत्तरसयं च । जइ वासति मिग्गसिरे दसराया तिणि उक्कोसा ॥६८॥ काऊण मासकप्पं तत्थेव ठियाणऽतीए मग्गसीरे । सालम्बणाण छम्मासितो तु जट्ठोग्गहो होति ॥६९॥
अत्र तु पञ्चकं पञ्चकं कारणिकं या सविंशतिर्मासः। शुद्धदशमीस्थितानां च आषाढीपूर्णिमापसरणम् ॥१७॥ इति सप्तति जघन्याऽशीतिर्नवतिदशोत्तरशतं च । यदि वर्षति मार्गशीर्षे दशरात्राणि त्रीणि उत्कृष्टाः ॥६८॥ कृत्वा मासकल्पं तत्रैव स्थितानांऽतीते मार्गशीर्षे । सालंबनानां पाण्मासिकस्तु ज्येष्ठावग्रहो भवति ॥६९॥
का अनुमान लगाकर तदनुसार कृषिकार्य में प्रवृत्त कृषकादि उसके प्रति कटु होंगे इस कारण गृहस्थ द्वारा वर्षावास के विषय में पूछने पर) अभिवर्द्धित संवत्सर में आषाढ पूर्णिमा से २० दिन और सामान्य संवत्सर में एक मास और बीस दिन अर्थात् ५० दिन तक (ऐसा अनिश्चयात्मक उत्तर देना चाहिए)।।६६।। ___ आषाढ पूर्णिमा को नियत स्थान पर प्रवेश कर (वहाँ रहते हुए वर्षावास योग्य क्षेत्र न मिलने की स्थिति में योग्य क्षेत्र प्राप्त करने हेतु) पाँच-पाँच दिन करके पचास दिन तक (योग्य क्षेत्र प्राप्त होने की) प्रतीक्षा करना चाहिए। इसके पश्चात् भाद्रपद शुक्ला दशमी को वहाँ से हट जाना चाहिए।।६७।।
इसप्रकार सत्तर दिन का वर्षावास जघन्य, अस्सी, नब्बे और एक सौ दस दिन, तथा यदि मार्गशीर्ष में (अनवरत) वर्षा हो तो तीन दसरात्रि (तीस दिन) तक (सामान्य चार मास के अतिरिक्त) और अधिकतम वर्षावास कर सकता है।।६८।।
जिस स्थान पर मासकल्प किया हो उसी स्थान पर वर्षावास करते हुए कारणपूर्वक मार्गशीर्ष भी व्यतीत हो जाने पर छः मास का ज्येष्ठावग्रह या वर्षावास होता है।।६९।।