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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन आसाढपुण्णिमाए, वासावासंतु होति गतव्वं । मग्गसिरबहुलदसमीउ जाव एक्कम्मि खेत्तम्मि ॥६३॥ बाहिं ठित्तति वसभेहिं खेत्तं गाहेत्तु वासपाओग्गं। कप्पं कहेत्तु ठवणा, सावणऽसुद्धस्स पंचाहे ॥१४॥ एत्थ तु अणभिग्गहिअंवीसतिरायं सवीसतीमासं । तेण परमभिग्गहिअं गिहिणातं कत्तिओ जाव ॥६५॥ असिवाइकारणेहिं अहवा वासं ण सुट्ठ आरद्धं । अहिवड्डियम्मि वीसा इयरेसु सवीसई मासो ॥६६॥ आषाढपूर्णिमायाः वर्षावासे तु भवति गन्तव्यम् । मार्गशीर्षबहुलदशम्याः यावत् एकस्मिन् क्षेत्रे ॥३॥ बहिः स्थितैः ऋषभैः क्षेत्रं गृहीत्वा वास प्रायोग्यम् । कल्पं कथ्येत स्थापना श्रावणाशुद्धस्य पञ्चमेहनि ॥६४॥ अत्र त्वनभिगृहीतं विंशतिरात्रं सविंशतिमासम् । तेन परमभिगृहीतं गृहिज्ञातं (गृहिणा तत्) कार्तिकं यावत्॥६५॥ अशिवादिःकारणैरथवा वर्षणं न सुष्ठवारब्धम् । अभिवर्द्धिते विंशतिः इतरेषु सविंशतिर्मासः ॥६६॥ आषाढ़पूर्णिमा तक वर्षावास के लिए चला जाना चाहिए और मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की दशमी तिथि तक एक क्षेत्र में निवास करना चाहिए।।६३।। ___ (वर्षावास क्षेत्र से) बाहर (नियत स्थान पर) स्थित श्रेष्ठ साधुओं को वर्षावास योग्य क्षेत्र (स्थान) ग्रहण कर, कल्प (वर्षावास) की घोषणा कर श्रावण-कृष्ण पक्ष पञ्चमी से वर्षावास की स्थापना करनी चाहिए।।६४।। ___ (चातुर्मास हेतु नियत क्षेत्र के बाहर स्थित होने पर गृहस्थों द्वारा पूछे जाने पर कि आर्य यहाँ वर्षावास करेंगे साधु को अभी निश्चय नहीं किया है ऐसा उत्तर देना चाहिए), यदि अभिवर्द्धित वर्ष है तो आषाढ़ पूर्णिमा के पश्चात् बीस दिन तक और (यदि चन्द्रवर्ष है तो) पचास दिन तक इसके पश्चात् निश्चय कर लिया है, ग्रहण कर लिया है-कार्तिक मास पर्यन्त (ऐसा उत्तर देना चाहिए)।।६५।।
कदाचित् अकल्याणकारी कारणों (के उत्पन्न होने से साधु के विहार करने पर) अथवा अच्छी वर्षा प्रारम्भ न होने पर (साधु के वर्षावास की स्वीकृति से अच्छी वर्षा