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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति मूल-छाया-अनुवाद १६५ ।।७।। सप्तमभिक्षुप्रतिमाध्ययननियुक्तिः ।। भिक्खूणं उवहाणे पगयं तत्थ व हवन्ति निक्खेवा। तिन्नि य पुव्वुट्ठिा पगयं पुण भिक्खुपडिमाए॥४४॥ समाहिओवहाणे य विवेकपडिमाइ य पदिसलीणा य तहा एगविहारे य पंचमीया।।४५॥ आयारे बायाला पडिमा सोलस य वनिया ठाणे। चत्तारि अ ववहारे मोए दो दो चंदपडिमाओ॥४६॥ एवं च सुयसमाधिपडिमा छावट्ठिया य पन्नत्ता। समाईयमाईया
चारित्तसमाहिपाडमाआ8 भिक्षणां उपधानं प्रकृतं तत्र च भवन्ति निक्षेपाः। त्रयश्च पूर्वोद्दिष्टाः प्रकृतं पुनः भिक्षुप्रतिमाः ॥४४॥ समाध्युपधाने च विवेकप्रतिमा च। प्रतिसंलीनता च तथा एकविहारश्च पञ्चमी ॥४५॥ आचारे द्विचत्वारिंशत् प्रतिमा षोडश च वर्णिताः स्थाने। चतस्त्रश्च व्यवहारे मोचे द्वे द्वे चंदप्रतिमेश्च ॥४६॥ एवं च श्रुतसमाधिप्रतिमाः षट्षष्टिश्च प्रज्ञप्ताः ।
सामायिकादयः चारित्रसमाधिप्रतिमाः ।।४७॥ प्रस्तुत भिक्षु-प्रतिमा नामक अधिकार में भिक्षु के (नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव ये चार) निक्षेप होते हैं। (इनमें से नाम भिक्षु, स्थापना भिक्षु और द्रव्यभिक्षु ये तीन पहले ही (उपासक प्रतिमा में) कहे गये हैं। इस (भिक्षु प्रतिमा अधिकार) में भिक्षु प्रतिमाओं का कथन किया गया है।।४४।।
समाधि, उपधान, विवेक, प्रतिसंलीनता तथा पाँचवीं एकलविहार प्रतिमा है।।४५।।
आचाराङ्ग में ४२, स्थानाङ्ग में १६ प्रतिमायें वर्णित हैं, व्यवहारसूत्र में चार प्रतिमायें तथा प्रसवण-नियम (सम्बन्धी लघु एवं दीर्घ) दो प्रतिमायें हैं तथा दो चन्द्रप्रतिमायें (यवमध्या और वज्रमध्या) हैं।।४६।।
इसप्रकार श्रुतसमाधि प्रतिमा ६६ उपदिष्ट हैं। सामायिक आदि पाँच चारित्र सम्बन्धी प्रतिमायें हैं।।४७।।