________________
दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
।।२।। द्वितीयसबलाध्ययननियुक्तिः।। दव्वे चित्तलगोणाइएसु भावसबलो खुतायारो। वतिक्कम अइक्कमे अतियारे भावसबलोउ ॥१२॥ अवराहम्मि य पयणुए जेणउ मूलं न वच्चए साहू । सबलेई तं चरित्तं तम्हा सबलत्तणं बित्ति॥१३॥ वालेराई दाली खंडो बोडे खुत्ते य भिन्ने य। कम्मासपट्ट सबले सव्वावि विराहणा भणिआ ॥१४॥
। सबलनिज्जुत्ती समत्ता।।२।।
द्रव्ये चित्रलगवादिरेषु भावशबलः क्षुद्राचारः । व्यतिक्रमेऽतिक्रमेऽतिचारे भावशबलस्तु ॥१२॥ अपराधे च प्रतनुर्येन तु मूलं न व्रजेत् साधोः । शबलति तच्चरित्रं तस्मात् शबलत्वं वदन्ति ॥१३॥ बालो राजिः दारी खण्डो भग्नो छिद्रश्च भिन्नश्च । कर्पासपटः शबलः सर्वाअपि विराधना: भणिताः॥१४॥
चितकबरे बैलादि द्रव्य (शबल कहे जाते हैं जबकि) दूषित चरित्र वाले भाव शबल (कहे जाते हैं)। व्यतिक्रम-नियमविरुद्ध आचरण, अतिक्रम-नियम का उल्लङ्घन, और अतिचार-नियम का आंशिक भङ्ग - ये भावशबल हैं।।१२।।
सूक्ष्म अपराध (दुर्भाषितादि) जिससे श्रमण का मूल न जाय, वह (अपराध) चारित्र को दूषित करता है, इस कारण उसे शबलता का विस्तार करने वाला कहते हैं।।१३।।
(जिसप्रकार कोई घड़ा भले ही उसमें) बाल के बराबर दरार हो अथवा राई अथवा दाल के बराबर छिद्र हो अथवा खण्डित हो या थोड़ा या अधिक टूटा हुआ हो वह टूटा ही कहा जाता है, जिसप्रकार श्वेत सूती वस्त्र (पर छोटा या बड़ा दाग या धब्बा हो वह वस्त्र मलिन ही कहा जायगा, उसी प्रकार किसी चारित्र में छोटी या बड़ी) सभी विराधनायें शबल दोषयुक्त ही कही जायेगी।।१४।।