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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति मूल-छाया-अनुवाद दसाणं पिंडत्यो एसो मे वण्ओि समासेणं। एत्तो एक्केक्कंपि य अज्झयणं कित्तइस्सामि ॥८॥ दव्वं जेण व दव्वेण समाही आहियं च जं दव्वं । भावो सुसमाहितया जीवस्स पसत्थजोगेहिं ॥९॥ नाम ठवणा दविए खेत्तद्धा उड्ड ओवरई वसही। संजमपग्गहजोहे अचलगणणसंधणाभावे ॥१०॥ वीसं तु णवरिणेम्मं अइरेगाइं तु तेहिं सरिसाइं। नायव्वा एएसु य अन्नेसु य एवमाईसु ॥११॥
।। असमाहिट्ठाणनिज्जुत्ती समत्ता ।।१।।
दशानां पिण्डार्थ एष मया वर्णितः समासेन । इत एकैकमपि च अध्ययनं कीर्तयिष्यामि ॥८॥ द्रव्यं येन वा द्रव्येण समाधिराधृतं च यद्रव्यम् ।। भावो सुसमाधितया जीवस्य प्रशस्तयोगैः ॥९॥ नामस्थापनाद्रव्याणि क्षेत्रकालावूर्ध्वमुपरतिर्वसतिः। संयमः प्रगहो योधमचलं गणना सन्धानं भावः ॥१०॥ विंशतिस्तु केवलं नेमानि अतिरिक्तानि तु तैः सदृशानि।
ज्ञातव्यानि एतेषु चान्येषु चैवमादिषु ॥११॥ मेरे द्वारा आचारदशा का दस अध्ययन समूह संक्षेप में वर्णित किया गया। आगे एक-एक अध्ययन का कथन करूँगा।।८।।
द्रव्य निक्षेप की अपेक्षा से जिस द्रव्य से अथवा जिस द्रव्य का आलम्बन कर समाधि प्राप्त होती है, वह द्रव्य समाधि है, भाव निक्षेप की अपेक्षा से जीव के प्रशस्त योग द्वारा जो सुसमाहित (चित्तवृत्ति की प्रशान्त) अवस्था प्राप्त होती है वह भाव समाधि है।।९।।
(. समाधि के १४ स्थान-) नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, ऊर्धत्व, उपरति (विरामस्थान), वसति (उपाश्रय), संयमस्थान, प्रग्रह (नियन्त्रक स्थान), योध (आसनविशेष), अचलत्व (स्थिरता), गणना (संख्या) और निरन्तरता।।१०।।. ___असमाधि के बीस स्थान साङ्केतिक हैं, ये एवं इन के सदृश अन्य भी (बीस से) अधिक हो सकते हैं ऐसा जानना चाहिए।।११।।