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१५४ दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
दसआओ विवागदसा नामेहि य लक्खणेहिं एहिति। एत्तो अज्झयणदसा अहक्कम कित्तइस्सामि ॥४॥ डहरीओ उ इमाओ अज्झयणेसु महईओ अंगेसु। छसु नायादीएसुं वत्थविभूसावसाणमिव ॥५॥ डहरीओ उ इमाओ निज्जूढाओ अणुग्गहट्ठाए। थेरेहिं तु दसाओ जो दसा जाणओ जीवो॥६॥ असमाहि य सबलत्तं अणसादणगणिगुणा मणसमाही। सावगभिक्खूपडिमा कप्पो मोहो नियाणं च ॥७॥
दशा विपाकदशाः नामभिश्च लक्षणैरस्मिन्निति । इत अध्ययनदशाः यथाक्रमं कीर्तयिष्यामि ॥४॥ लव्यस्तु इमा अध्ययनेषु महत्योऽङ्गेषु । षद्सु ज्ञातादिषु वस्त्रविभूषावसानमिव ॥५॥ लघ्व्यस्तु इमाः नियूंढा अनुग्रहार्थाय। स्थविरैस्तु दशाः या दशा ज्ञायको जीवः ॥६॥ असमाधिश्च शबलत्वमाशातनागणिगुणाः । मनः समाधिः श्रावकभिक्षुप्रतिमाः कल्पो मोहो निदानं च॥७॥
इसप्रकार आयुविपाक की अपेक्षा से नाम और लक्षणों के आधार पर इसमें (ऐहिक) जीवन की दस अवस्थायें कही गयी हैं। आगे अध्ययन दशाओं अर्थात् दशाश्रुतस्कन्ध के दस अध्ययनों का यथाक्रम कथन करूंगा।।४।।
(श्रमणाचार और श्रावकाचार का) संक्षेप में वर्णन, दशाश्रुतस्कन्ध की दस दशा में और विस्तार से अङ्गों के अध्ययनों में है। ज्ञातादि छ: अङ्गों में वस्त्र-वेश का विवरण समाहित है।।५।। __ स्थविरों ने ज्ञानाभिलाषी जीवों के अनुग्रहार्थ (आचार सम्बन्धी) इन दस अध्ययनों को (पूर्व साहित्य से) संक्षेप में उद्धृत किया है- असमाधि स्थान, शबलदोष, आशातना, गणिगुण, मन:समाधि, श्रावक प्रतिमा, भिक्षु प्रतिमा, कल्प, मोह और निदान।।६-७।।