________________
१५२
दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन इसप्रकार पाठान्तरों के आलोक में प्राचीन ग्रन्थों का छन्द की दृष्टि से अध्ययन बहुत महत्त्वपूर्ण है।
यद्यपि नियुक्ति-संरचना या इसके घटकों को समग्र रूप से अभिव्यक्त करने वाला उल्लेख अभी तक दृष्टिगोचर नहीं हुआ है। फिर भी निक्षेप, एकार्थ, निरुक्त एवं दृष्टान्तकथायें तथा सूत्र ग्रन्थ के कुछ चुने विषयों का प्रतिपादन नियुक्ति के प्रमुख घटक के रूप में हमारे समक्ष आते हैं। इनमें निक्षेप प्रमुख घटक है। नियुक्तिकार पहले सूत्र ग्रन्थ के शीर्षक का, तत्पश्चात् उसके प्रत्येक अध्ययन के शीर्षक का निक्षेप करता है। यदि किसी शब्द का पूर्व (नियुक्तियों में) निक्षेप हो चुका है तो उसका निर्देश प्राय: 'पुव्वुद्दिटुं' कहकर कर दिया जाता है। शीर्षक में प्राप्त शब्दों के अतिरिक्त नियुक्ति में सूत्र ग्रन्थ के कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण शब्दों का भी निक्षेप प्राप्त होता है। उल्लेखनीय है कि अनिवार्य रूप से सभी अध्ययनों के शीर्षक शब्दों निक्षेप नहीं हुआ है। उदाहरण स्वरूप दशाश्रुतस्कन्यनियुक्ति के दूसरे अध्ययन शीर्षक 'शबल' का निक्षेप नहीं हुआ है। यह भी देखने में आया है कि शीर्षक शब्द का निक्षेप न कर उसके किसी पर्यायवाची का निक्षेप कर दिया गया है, जैसे अष्टम पर्युषणा अध्ययन के पयुर्षणा शब्द का निक्षेप न कर इसके पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख कर पर्यायवाची स्थापना का निक्षेप किया गया है।
दशाभूतस्कन्धनियुक्ति में सत्र के शीर्षक शब्दों के अतिरिक्त गण, उपग्रह, सङ्ग्रह परिज्ञा और बन्ध का निक्षेप किया गया है।
प्रस्तुत नियुक्ति में प्राप्त एकार्थक शब्दों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि एकार्थक के रूप में कुछ ऐसे भी शब्द ग्रहण किये गये है जो शब्दकोशों के अनुसार सीधे पर्यायवाची नहीं हैं।
नियुक्ति में प्राप्त कथा-सङ्केत धर्मकथाओं के तत्कालीन स्वरूप और उनके परवर्ती विवरण का तुलनात्मक अध्ययन करने में सहायक हैं।