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उपसंहार
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द०नि० के आठवें अध्ययन की ६७ गाथाओं के स्थान पर नि० भाष्य में ७२ गाथाओं का ‘इमाणिज्जुत्ती' कहकर 'उद्धरण के रूप में प्राप्त होना तथा इन पाँच अतिरिक्त गाथाओं की चूर्णि, दशा०चूर्णि और नि०चू० में यथोचित स्थान पर मिलना बहुत महत्त्वपूर्ण है। यही नहीं इन अतिरिक्त गाथाओं की विषय प्रतिपादन की दृष्टि से साकाङ्गता भी है।
इससे यह सम्भावना बनती है कि भाष्यकार (निशीथ) तथा उक्त चूर्णिकारों के समय में इस अध्ययन में ७२ गाथायें रही होंगी। द०नि० में एक ही गाथा दो स्थलों पर और वह भी अनवरत क्रम से (क्रमाङ्क ३२ और ३३ पर) उपलब्ध हैं जो बहुत ही असङ्गत प्रतीत होता है। इससे यह सम्भावना बनती है कि इस नियुक्ति में कुछ गाथायें कालान्तर में हटाई गई है।
द०नि० की अधिकांश गाथाओं में संस्कृत मात्रिक छन्द आर्या का प्राकृत रूप 'गाथा सामान्य' प्रयुक्त हुआ है। इसमें चारों चरणों की मात्राओं का योग ५७ होता है। अपवाद स्वरूप में कुछ गाथायें गाहू (५४ माला) उद्गाथा (६० मात्रा) और गाहिनी (६२ मात्रा) में निबद्ध हैं।
छन्द की दृष्टि से गाथाओं का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि १४१ में से ४७ गाथायें ही यथास्थिति में शुद्ध है और २९ गाथाओं में कवि-समय या परम्परा के अनुसार गुरु का ह्रस्व और ह्रस्व की गुरु गणना करने से गाथा लक्षण घटित हो जाता है। इस प्रकार ७६ गाथायें छन्द की दृष्टि से शुद्ध है।
अशुद्ध ६५ गाथाओं में से कुछ गाथायें प्राकृत भाषा शब्द-धातु रूपों के नियमानुसार अनुस्वार का ह्रास अथवा वृद्धि कर देने पर छन्द की दृष्टि से शुद्ध हो जाती हैं तो कुछ में शब्द-धातु रूपों के नियमों के ही परिप्रेक्ष्य में स्वर को ह्रस्व या दीर्घ कर देने पर वे शुद्ध हो जाती हैं। दशाभूतस्कन्ध की कतिपय गाथाओं को छन्द की दृष्टि से शुद्ध करने के लिए पादपूरक निपातों का समावेश करना अपेक्षित है। ___ निर्यक्त गाथाओं की अन्यत्र प्राप्त समान्तर गाथाओं का तुलनात्मक अध्ययन करने से जो तथ्य हमारे सामने आते हैं उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण यह है कि पाठभेद मात्र छन्द-दोष की ही सूचक नहीं है। रचनाकार द्वारा अलग-अलग छन्द में भी रचना करने के कारण पाठ भेद दृष्टिगोचर होता है साथ ही कुछ गाथाओं के पाठान्तरों में ग्रन्थकारों द्वारा किसी-किसी गाथा में एक या दो भिन्न शब्द प्रयुक्त किये गये हैं परन्तु परिवर्तित शब्दों की मात्रा भी इस प्रकार है कि छन्द परिवर्तित नहीं होता है। किसी-किसी गाथा का पाठान्तर अभिव्यक्ति भी सहायक सिद्ध होता है।