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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति : एक अध्ययन
लोग पृष्प-गन्धादि लेकर उसके पास आना आरम्भ कर दिये। श्रावक-श्राविका वर्ग से पूछा गया कि क्या उन्हें बुलाया गया है? लोगों ने अस्वीकार किया। पूछने पर वह बोली मेरी विद्या का चमत्कार है। आचार्य ने कहा- त्याग करो। उसके द्वारा चामत्कारिक कार्य छोड़ने पर लोगों ने आना छोड़ दिया। आर्या पुनः एकाकिनी हो गई। तब चमत्कार द्वारा पुन: बुलाना आरम्भ किया। आचार्य द्वारा पूछने पर वह बोली कि लोग पूर्व अभ्यास के कारण आते हैं। इसप्रकार बिना आलोचना किये ही मृत्यु प्राप्त कर वह सौधर्म कल्प में ऐरावत की अग्रमहिषी उत्पन्न हुई वह भगवान् महावीर के समवसरण में हस्तिनी का रूप धारण कर आई है। कथा के अन्त में उच्चस्वर से शब्द की है। भगवान् ने पूर्वभव कहा। इसलिए कोई भी साधु अथवा साध्वी ऐसी दुरन्ता माया न करे। ७. लोभ कषाय विषयक आर्यमङ्ग दृष्टान्त
महुरा मंग आगम बहुसुय वेरग्ग सट्टपूयाय। सातादिलोभ णितिए, मरणे जीहा य णिद्धमणे ।।११०।।
- द०नि०।१ अज्जमंगू आयरिया बहुस्सुया अज्झागमा बहुसिस्सपरिवारा उज्जयविहारिणो ते विहरंता महुरं णगरी गता। ते “वेरग्गिय" त्ति काउं सड्डेहिं वत्थातिएहिं पूइता, खीर-दधि-घय-गुलातिएहिं दिणे दिणे पज्जतिएण पडिलाभयंति।
सो आयरिओ लोभेण सातासोक्खपडिबद्धो ण विहरति। णितिओ जातो। सेसा साधू विहरिता।
सो वि अणालोइयपडिक्कंतो विराहियसामण्णे वंतरो णिद्धम्मणा जक्खो जातो। तेण य पदेसेण जदा साहू णिग्गमण-पवेसं करेंति, ताहे सो जक्खों पडिमं अणुपविसित्ता महापमाणं जीहं णिल्लालेति।
साहूहिं पुच्छितो भणति - अहं सायासोक्खपडिबद्धो जीहादोसेण अप्पिड्डिओ इह णिद्धम्मणाओ भोमेज्जे णगरे वंतरी जातो, तुज्झ पडिबोहणत्थमिहागतो तं मा तुब्मे एवं काहिह।
अण्णे कहेंति-जदा साहू भुंजंति तदा सो महप्पमाणं हत्थं सव्वालंकारं विउव्विऊण गवक्खदारेण साधूण पुरतो पसारेति।
साहूहिं पुच्छितो भणाति-सो हं अज्जमंगू इड्डिरसपमादगरुओ मरिऊण णिद्धम्मणे जक्खो जातो, तं मा कोइ तुब्भे एवं लोभदोसं करेज्ज।।३२००।।