________________
१४५
दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति में इङ्गित दृष्टान्त जणो य से पणयसिरो कयंजलितो चिट्ठति। अद्धवयातिक्कंता वेरग्गमुवगता गुरुं विण्णवेति - “आलोयणं पयच्छामि' त्ति। आलोइए पुणो विण्णवेति - “ण दीहं कालं पवज्जं काउं समत्था'। .
ताहे गुरुहिं अप्पं कालं परिकम्मवेत्ता विज्जामंतादियं सव्वं छड्डावेत्ता "परिण्ण" त्तिअणसणगं पच्चक्खायं। आयरिएहिं उभयवग्गो वि वारितो ण लोगस्स कहेयव्वं।
ताहे सा भत्ते पच्चक्खाते जहा पुव्वं बहुजणपरिवुडा अच्छित्ता इयाणिं न तहा अच्छति, अप्पसाहुसाहुणिपरिवारा चिट्ठइ। ताहे से अरती कज्जति। ततो ताए लोगवसीकरणविज्जा मणसाआवाहिता।
ताहे जणो पुप्फधूवगंधहत्थो अलंकितविभूसितो वंदवदेहि। उभयवग्गो पुच्छितो - किं ते जणस्स अक्खायं? ते भणंति - “ण व" ति। सा पुच्छित्ता भणति - मम विज्जाए अभिओइयं एति। गुरुहिं भणिता - “ण वट्टति' त्ति।
ताहे पडिक्कंता। सयं ठितो लोगो आगंतु। एवं तओ वारा सम्म पडिक्कंता, चउत्थावराते पुच्छिताण सम्ममाउट्टा भणति य- पुव्वब्भासाहुणाआगच्छंति।।३१९८।।
अणालोएउ कालगता सोहम्मे एरावणस्स अग्गमहिसी जाता। ताहे सा भगवतो वद्धमाणस्स समोसरणे आगत्ता, धम्मकहावसाणे हत्थिणिरूवं काउं भगवतो पुरतो ठिच्चा महतासद्देण वातं कम्मं करेति।
ताहे भगवं गोयमो जाणगपुच्छं पुच्छति।
भगवया पुव्वभवो से वागरितो। मा अण्णो वि को ति साहु साहुणी वा मायं काहिति, तेणेयाए वायकम्मं कतं, भगवता वागरियं। तम्हा एरिसी माया दुरंता ण कायव्वा।
-नि०भा०चू०। कथा-सारांश
पाण्डुरार्या नामक एक शिथिलाचारिणी साध्वी थी। वह पीत संवलित शुक्ल वस्त्रों से सदा सुसज्जित रहती थी। इसलिए लोग उसे पाण्डुरार्या नाम से जानते थे। उसे विद्यासिद्ध थी और वह बहुत से मन्त्रों को जानने वाली थी। लोग उसके समक्ष करबद्ध सिर झुकाये बैठे रहते थे। उसने आचार्य से भक्तप्रत्याख्यान कराने के लिए कहा। तब गुरु ने सब प्रत्याख्यान करा दिया। भक्तप्रत्याख्यान करने पर वह अकेली बैठी रहती थी। उसके दर्शनार्थ कोई नहीं आता था। तब उसने विद्या द्वारा लोगों का आह्वान किया।