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दशाश्रुतस्कन्धनिर्युक्ति में इङ्गित दृष्टान्त
क्यारी के ढेलों से मारा, फिर भी नहीं उठा। चार क्यारियों के ढेर से मारा, फिर भी नहीं उठा। तब उसने बैल पर ढेलों का ढेर कर दिया और बैल मर गया।
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गोवधजनित पाप की विशुद्धि के लिए वह मरुक किसी ब्राह्मण के पास गया। सारी बात बताकर उसने अन्त में कहा कि आज भी बैल के ऊपर मेरा क्रोध शान्त नहीं हुआ। ब्राह्मण ने कहा- तुम अतिक्रोधी हो, तुम्हारी शुद्धि नहीं है, तुम्हें प्रायश्चित्त नहीं दूँगा ।
इसप्रकार साधु को भी क्रोध नहीं करना चाहिए। यदि क्रोध उत्पन्न भी हो तो वह जल में पड़ी लकीर के समान हो । जो क्रोध पुन: एक पक्ष में, चातुर्मास में और वर्ष में उपशान्त न हो उसे विवेक द्वारा शान्त करना चाहिए ।
५. मान कषाय विषयक अत्यहङ्कारिणी भट्टा दृष्टान्त
वणिधूयाऽच्वंकारिय भट्टा अट्ठसुयमग्गओ जाया ।
वरग
पडिसेह सचिवे, अणुयत्तीह पयाणं च ।। १०४।। विचिंत विगालपडिच्छणा य दारं न देमि निवकहणा । खिंसा णिसि निग्गमणं चोरा सेणावई गहणं ।। १०५ ।। नेच्छइ जलूगवेज्जगगहण तम्मि य अणिच्छमाणम्मि । गाहावइ जलूगा धणभाउग कहण मोयणया ।। १०६ ।। सयगुणसहस्स पागं, वणभेसज्जं वतीसु जायणता । तिक्खुत्त दासीभिंदण ण य कोव सयं पदाणं च । । १०७ ।।
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- द०नि० १५॥
दारं । सा ण उघाडेति । ताहे तेण चिरं अच्छिऊण भणिया- मा तुमं चेव सामिणी होज्जाहि। सा दारं उग्घाडेऊण अडविहुत्ता माणेण गता। चोरेहिं घेत्तुं चोरसेणावतिस्स उवणीता । तेण भणिता महिला मम होहित्ति । सा णेच्छति तेण वलामोडिए ण गेहंति । तेहिं जलोगवेज्जस हत्थे विक्कीता । तेणवि भणिता मम महिला होहित्ति । सा च्छति रोसेण जलोगाओ पडिच्छसुत्ति भणिता । सा तत्थ णवणीतेणं मक्खिया जोगाओ गिति । तं असरिसं करेति । ण य इछति । अन्नरूवलावण्णा जाता। भाउतेण य मग्गमाणे पच्चभिन्ना या मोएउण नीता वमणे विरेअणेहि य पुण णवीकाऊण अमच्चेण नेताविता तीसे य तेल्लं सतसहस्सपागं पक्कं तं च साधुणा मग्गितं । ताए दासी संदिट्ठा आणेहि, ताए आणंतीए भायणं भिन्नं, एवं तिन्निवारेभिण्णणि, णय रुठ्ठा तिसु सतसहस्सेसु विणट्टेसु । चउत्य वारा अप्पणा उठ्ठेतुं दिन्नं । जति ताव ताए मेरुसरिसोवमो माणो निहतो किंमंग पुण साधुणा, निहणियव्वो चेव । - द०चू० ।