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दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति में इङ्गित दृष्टान्त सीसं छिण्णं सेणावतिस्स णट्ठो दमगो। ते य चोरा हण्णायगा णट्ठा। तेहिं य गतेहिं मयकिच्चं काउं तस्स डहरतरतो भाया सो सेणाहिवो अभिसित्तो। तस्स मायभगिणीभाउज्जाइयातो अ खिंसंति- “तुमं भाओवरतिए जीवंते अच्छति सेणाहिवत्तं काउं, घिरत्यू ते जीवियस्स। सो अमिरसण गतो गहितो - दमगो जीवगेज्झो, आणितो निगडियवेढिगो सयणमज्झगतो आसणट्ठितो वणगं गहाय भणति-अरे अरे भातिवेरिया, कत्थ ते आहणामि त्ति।
दमगेण भणियं “जत्थ सरणागता पहरिज्जंति तत्थ पहराहिं' त्ति।
एवं भणिते सयं चिंतेति- “सरणागया णो पहरिज्जति।' ताहे सो माउमगिणीसयणाणं च मुहं णिरिक्खति।
तेहिं ति भणितो- “णो सरणागयस्स पहरिज्जति", ताहे सो तेण पुएऊण मुक्को।
जति ता तेण सो धम्मं अजाणमाणेण मुक्को, किमं णु पुण साहुणा परलोगभीतेण। अब्भुवयवच्छल्लेण अब्भुवगयस्स सम्मं ण सहियव्वं? खमियव्वं ति।
इयाणिं “कसाय" त्ति दारं।
तेसिंचउक्कणिक्खेवो जहावट्ठाणे कोहोचउव्विधो उदगराइसमाओवालुआराइसमाणो पुढवीराइसमाणो पव्वयगराइसमाणे दारं।
- नि०भा०चू०। कथा-सारांश'२
द्रमक नामक नौकर का पुत्र, स्वामी के घर में बना क्षीरान देखकर, उसे माँगने लगा। नौकर गाँव में से दूध और चावल माँगकर लाया और पत्नी को क्षीरान बनाने के लिए कहा। निकट के गाँव में ठहरा हुआ चोरों का दल गाँव लूटने के लिए आया
और उस गरीब के घर से क्षीरान से भरी थाली उठा ले गया। उस समय वह नौकर खेत पर गया हुआ था। खेत से तृण काटकर लौटते समय वह यह सोचते हुए घर आया कि आज बच्चे के साथ क्षीरान खाऊँगा। बच्चे ने क्षीरान की चोरी के बारे में बताया। द्रमक तृण-पूल रखकर क्रोध से भरकर चला। चोरों के सेनापति के सामने क्षीरान की थाली देखा, सेनापति अकेला था। चोर दुबारा गाँव में चले गये थे। द्रमक ने तलवार से उसका सिर काट लिया। सेनापति का वध हो जाने से चोर भी भाग गये। सेनापति का छोटा भाई नया सेनापति बना। सेनापति की माँ, बहन और भाभी उसकी निन्दा करती थीं- भाई के वैरी के जीवित रहने पर तुम्हारे सेनापतित्व को धिक्कार है। सेनापति क्रोध में भरकर गया और द्रमक को जीवित पकड़कर लाया। उसने द्रमक से पूछा- हे! हे! भ्रातृवैरी! किस अस्त्र से तुम्हें मारूँ। द्रमक ने उत्तर