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क्षेत्रीयशक्ति ]
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का स्थान ही क्षेत्र हैं ! समय की मर्यादा काल है अर्थात् निजवर्तना की मर्यादा काल है । तथा जो सर्वप्रकट है, परिणमन ही जिसका सर्वस्व है और जो सम्पूर्ण निजलक्षण अवस्थाओं से मण्डित है, वही भाव है ।
इसप्रकार जो पर्याय के स्वरूप को सदा निश्चल रखे -- ऐसी सामर्थ्य का नाम ही पर्यायवीर्यशक्ति है ।
(४) क्षेत्रवीर्यशक्ति
अपने प्रदेशों अर्थात् क्षेत्रों को परिपूर्ण निष्पन्न रखने की धारण करने की सामर्थ्य को 'क्षेत्रवीर्यशक्ति' कहते हैं । क्षेत्रवीर्य के कारण हो क्षेत्र है । क्षेत्र में अनन्त गुण हैं, अनन्त पर्यायें हैं । प्रत्येक गुण के रूप में सब गुणों का रूप सिद्ध होता है । सत्ता में सब गुण है । सत्ता लक्षण सबमें व्यापक है - ज्ञान है, दर्शन है, द्रव्य है, पर्याय है । इसप्रकार द्रव्यत्व, भगुरुलघुत्व आदि सभी गुणों में जानना चाहिए ।
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क्षेत्र में गुण का विलास है, पर्याय का विलास है तथा द्रव्यरूपी मन्दिर की मूलभूमि को क्षेत्र या प्रदेश कहा जाता है । क्षेत्र या प्रदेश में अनन्त गुरण हैं । क्षेत्र से द्रव्य की मर्यादा जानी जाती है । द्रव्य-गुण-पर्याय का विलास, निवास और प्रकाश क्षेत्र के आधार से है । यह क्षेत्र सबका अधिकरण है । जिस प्रकार नरक का क्षेत्र दुःख उत्पन्न करने