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[ चिदविलास
कहना चाहिए और यदि अवस्तु है तो इसका कोई स्वरूप नहीं रह सकेगा, इसप्रकार विरोध प्राप्त होता है ।
समाधान :- द्रव्य-गुण- पर्यायरूप वस्तु है । पर्याय परिणाम, द्रव्यवेदना, गुरण उत्पाद प्रादि रूप पर्याय है, भ्रतः इस विवक्षा से पर्याय को वस्तुसंज्ञा दी जाती है । तीनों की परिणाम - सत्ता प्रभेद है, अतः परिणाम स्वरूप पर्याय को परिणाम की अपेक्षा वस्तुसंज्ञा दी जाती है, द्रव्य की अपेक्षा से परिणाम की वस्तुसंज्ञा नहीं है । यदि परिणाम अपेक्षा से भी परिणाम को 'वस्तु' न कहा जावे तो परिणाम कोई वस्तु ही न रहे, नाशरूप हो जावे । श्रतः विवक्षा से प्रमाण है | पर्यायवस्तु द्रव्यरूप नहीं है । इसीप्रकार अनन्त गुण भी ध्रुवरूप वस्तु के कारण होने से वस्तु है, कार्यरूप नहीं । यह ध्रवरूप कहने की विवक्षा अलग है तथा कार्य परिणाम ही दिखाता है - यह विवक्षा अलग है । यह पहिले ही कहा जा चुका है कि नाना भेदों से नाना विवक्षायें होती हैं, नयों के ज्ञान से विवक्षाओं का ज्ञान होता है । श्रतः पर्यायवस्तु द्रव्यात्मक नहीं है, पर्यायरूप है - यह कथन सिद्ध हुआ ।
पर्याय के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव क्या हैं ? उसे कहते हैं :- पर्याय के उत्पन्न होने का क्षेत्र द्रव्य है । स्वरूपक्षेत्र के प्रत्येक प्रदेश में परिणामशक्ति है और उस शक्ति