________________
पर्यायवीर्यशक्ति ]
[६३
प्राप्त किया वह चेतना से ही प्राप्त किया और चेतना में ज्ञान प्रघान है; अतः साधारणसत्ता अप्रधान थी, उसको असाधारण चेतना के द्वारा ज्ञान की प्रधानता से असाधारण चेतनसत्ता का प्रधान नाम प्राप्त हुआ है। इसप्रकार ऐसी महिमा सत्ताज्ञान में सत्ताज्ञानवीर्य के कारण है, अतः वीर्यगुरण प्रधान है। (३) पर्यायवीर्यशक्ति ___ जो वस्तुरूप परिणमन करे, उसे पर्याय कहते हैं और उसे निष्पन्न रखने की - धारण करने को सामर्थ्य को 'पर्याययोर्यशक्ति' कहते हैं । जब परिणाम द्वारा वस्तु का वेदन किया जाबे, गुण का वेदन किया जाये; तब वस्तु प्रकट होती है । वस्तु और गुण का स्वरूप पर्याय द्वारा प्रकट होता है। यदि वस्तुरूप परिणमन न हो तो वस्तु की सत्ता ही नहीं रहेगी । इसीप्रकार यदि गुणरूप परिगमन न हो तो गुग का स्वरूप ही न रहे । ज्ञानरूप परिगमन नहीं होने पर ज्ञान ही नहीं रह सकेगा । अतः यदि सब गुरण परिणमन न करें तो सब गुण कसे रह सकेंगे ? सबका मूल कारण पर्याय है । पर्याय अनित्य है, जो नित्य का कारण है । अतः वस्तु नित्यानित्य है । पर्यायरूपी चंचल तरंगे द्रव्यरूपी ध्र वसमुद्र को दर्शाती हैं।
शंका :-पर्याय वस्तु है या अवस्तु ? यदि वस्तु है तो वस्तु को वस्तुसंज्ञा न देकर 'पर्याय ही वस्तु है' - ऐसा