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[ चिद्विलास
ज्ञान असाधारण गुण है और सत्ता साधारण गुण है । इनमें जब सत्ता की मुख्यता ली जाती है, तब कहा जाता है कि ज्ञान सत्ता के श्राधार से रहता है; प्रतः सत्ता प्रधान है । वह द्रव्य-गुण- पर्याय के रूप को रखता है, ज्ञान के भी रूप को रखता है, अतः असाधारण होते हुए भी साधारण है ।
इसीप्रकार जब ज्ञान की मुख्यता ली जाती है, तब कहा जाता है कि यदि ज्ञान न होता तो क्या सत्ता प्रचेतन नहीं हो जाती, अथवा यह कहा जाता है कि चेतना ज्ञान से है और चेतना से चेतन की सत्ता है, अतः चेतनसत्ता को धारण करने में ज्ञानचेतना कारण है । सर्वज्ञशक्ति भी ज्ञान से है, जो सबमें प्रधान है, पूज्य है । इसप्रकार जैसा ज्ञान हो उसीप्रकार सब गुण होते हैं, जैसे निगोदिया के ज्ञान होन हैं तो उसके सभी गुण विकसित या प्रकट हैं । ज्ञान ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों सभी गुण बढ़ते जाते हैं । जैसे ज्यों-ज्यों स्वसंवेदन ज्ञान बढ़ता जाता है, त्यों-त्यों सुख प्रादि सब गुण बढ़ते जाते हैं । यहाँ तक कि बारहवें गुणस्थान में चारित्र के हो जाने पर भी ज्ञान के बिना सुख 'अनन्त सुख' नाम नहीं पाता ।
अतः ज्ञानगुण सब चेतना में प्रधान है, उसी के कारण चेतना सत्ता है । साधारणसत्ता ने भी जो चेतनासत्ता नाम