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द्रव्यवीर्य के ये सब विशेषण नय के द्वारा कहे है ।
(२) गुणवीर्यशक्ति
गुण को धारण करने की सामर्थ्य को गुणवीर्यशक्ति कहते हैं । यह सामान्य गुणवीर्य का कथन हुआ, अब विशेष गुणवीर्य का कथन करते हैं :
सुणी शक्ति ]
ज्ञानगुरण में ज्ञायकता को रखने की
धारण करने की सामर्थ्य ज्ञानगुणवीर्य है । दर्शन में देखने की शक्ति है, अतः उसको रखने की धारण करने की सामर्थ्य दर्शनवीर्य है । सुख को रखने को धारण करने की सामर्थ्य सुखवीर्य है । ऐसे ही अन्य गुणों की रखने की सामर्थ्यवाले विशेष गुणवीर्य हैं । प्रत्येक गुण में वीर्यशक्ति के प्रभाव से ऐसी सामर्थ्य है ।
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एक सत्तागुण है, जो वीर्य के प्रभाव से ऐसी महिमा धारण करता है । द्रव्यसत्तावीर्य के प्रभाव से द्रव्य में हैपन ( अस्तित्व ) की सामर्थ्य है । पर्यायसत्तावीर्य के प्रभाव से पर्याय में है पना ( अस्तित्व ) की सामर्थ्य है ।
एक सूक्ष्मगुणसत्तावीर्य में ऐसी शक्ति है, जिससे सब गुण सूक्ष्म हैं - ऐसी सामर्थ्यता है । ज्ञान सूक्ष्म है - ऐसी इसी से सामर्थ्यता है । ऐसे ही सब गुणों में वीर्यसत्ता का प्रभाव फैल रहा है और इसीप्रकार सब गुणों में अपने-अपने गुण का वीर्य अनन्त प्रभाव को धारण करता है, जिसका वर्णन विस्तार के भय से नहीं किया जा रहा है ।