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अव्यवीर्यशक्ति ]
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समाधान :- द्रव्यवीर्य का सामान्यदृष्टि से कथन किया जावे, तब अभेद है और जब गुणसमुदाय की विवक्षा से कथन किया जाये, तब भेद है । यहां गुण का भेद अलग है, अतः इस विवक्षा में भेद आया, परन्तु अभेद को सिद्ध करने के लिए यह भेद है, भेद के बिना अभेद नहीं होता; अतः 'भेदाभेद' - ऐसा कहा जाता है ।
द्रव्यवीर्य अपने चतुष्टय को अपेक्षा अस्ति हैं और परचतुष्टय की अपेक्षा नास्ति है ।
द्रव्यवीर्य अपनी अपेक्षा नित्य है और पर्यायवीर्य भी इस द्रव्यवीर्य में अन्तभित होता है; अतः उसकी अपेक्षा अनित्य है । द्रव्यवीर्य नित्य है, उसे पर्यायवीर्य भी सिद्ध करता है, अतः नित्य का साधन प्रनित्य है । द्रव्य का स्वभाव नित्यानित्यात्मक है, मनेक धर्मात्मक है।
नयचक (पालापपद्धति) में कहा भी है :-- नानास्वमावसंयुक्त ध्यं ज्ञात्वा प्रपाणतः ११
सामान्यार्थ :-प्रमाण की अपेक्षा द्रव्य को नानास्वभाब से युक्त जानना चाहिये।
शंका :- यदि पर्याय स्वभाव से अनित्य है तो पर्याय को अनित्य कहो, द्रव्य को अनित्य क्यों कहते हो ? १. यह पंक्ति मालापपद्धति के श्लोक क्रमांक ६ में दी गई है, साथ ही
द्रव्यस्वभावप्रकाशक नयचऋ में भी यह श्लोक प्राकृत में दिया गया है। अतः नचक्र के साथ ऊपर कोष्ठक में प्रलापपद्धति भी लिख दिया है।