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[ चिविलास
समाधान :- व्यापकभाव के दो भेद हैं - १. भिन्नव्यापक और २. अभिन्नव्यापक ।
भिन्न व्यापक के भी दो भेद हैं :- १ बन्धव्यापक और २. प्रबन्धव्यापक । जैसे तिल में तेल बन्धव्यापक है, वैसे ही देह में प्रात्मा बन्धव्यापक है और धन आदि में अबन्धव्यापक है ।
__ शुद्ध या अशुद्ध अवस्था में अभिन्न व्यापक है । गुण व पर्याय की अपेक्षा से अभिन्न व्यापक के दो भेद हैं :- १. युगपत् सर्वदेशब्यापक और २. क्रमवर्ती एकदेशच्यापक । द्रव्य-गुण युगपत् सर्वदेशव्यापक हैं और पर्याय मवर्ती एकदेशव्यापक, क्योंकि सब गुण-पर्याय से एक द्रव्य उत्पन्न हुआ है, अतः युगपत् सर्वदेशव्यापक अभिन्नता तथा क्रमवर्ती एकदेशव्यापक अभिन्नता गुण-पर्याय से हुई । इसप्रकार व्यापकता में गुण-पर्याय का समुदाय प्रकट हुना, अतः 'गुण-पर्याय में व्यापकता' - ऐसा कहने में कथन मात्र का भेद है । वस्तु का स्वभाव अन्य-अन्य भेदों से और अभेद सत्ता से सिद्ध है । द्रव्य का विशेष स्वरूप पहिले कहा जा चुका है, उसके रखने की सामर्थ्य 'द्रव्यवीर्यशक्ति' है । __ शंका : - यह द्रव्यवीर्य भेद है या अभेद ? अस्ति है या नास्ति ? नित्य है या अनित्य ? एक है या अनेक ? कारण है या कार्य ? सामान्य है या विशेष ?