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वीर्यशक्ति ]
करके प्रकट करती है । ऐसे अखण्डित प्रभुत्व को जो धारण करता है, उसे पर्याय का प्रभुत्व कहते हैं।
इसप्रकार प्रभुत्वशक्ति को जानकर जीव अपने अनन्त प्रभुत्व को प्राप्त करता है । वीर्यशक्ति
अपने स्वरूप को निष्पन्न करने वाली सामथ्र्य रूप वीर्यशक्ति है । उसके सामान्य और विशेष के भेद से दो भेद हैं। वस्तु के स्वरूप को निष्पन्न रखने की सामर्थ्य 'सामान्यवीर्यशक्ति' है।
__ "विशेषवीर्यशक्ति' के सामान्य रूप से तीन भेद है :१. द्रव्यवीर्यशक्ति, २. गुणवोर्य शक्ति, ३. पर्यायवीर्य शक्ति । विशेष रूप से ४. क्षेत्रवीर्यशक्ति, ५. कालवोर्यशक्ति, ६. तपवीय शक्ति, ७. भाववीर्य शक्ति प्रादि हैं । १. द्रव्यवीर्यशक्ति
द्रव्यवीर्य गुण-पर्यायवीयं का समुदाय है ।
शंका :- जो गुण-पर्याय को द्रवित करे अर्थात् उनमें व्यापक हो, वह द्रव्य है और गुण पर्याय का समुदाय भी द्रव्य है । यहाँ गुरण-पर्याय का समुदाय और गुण-पर्याय में व्यापक - क्या इनमें विशेष अन्तर है और क्या द्रव्य में भी अन्तर है ?